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माँ चरणों में प्रभु का वास

संजय जैन
मुंबई (महाराष्ट्र)
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(तर्ज:- मैं पल दो पल का….. )

तू वर्षो से यहाँ वहाँ भटक रहा
पर प्रभु दर्शन नहीं मिल पाये है।
किये थे पूर्व जन्म में अच्छे कर्म।
इसलिए मनुष्य जन्म तुम पाये हो।।
तू वर्षो से यहाँ वहाँ भटक रहा..।

तुझसे पहले कितने भक्तगण
यहाँ आकर देखो चले गये।
पर वो भी शायद प्रभु के दर्शन
बिना ही यहाँ से लौट गये।
वो भी मनुष्य पर्याय को पाये है
तू भी मनुष्य गति को पाये हो।
पर लगता तुम्हारी श्रध्दा में
कुछ तो कमी जरूर रही होगी।।
तू वर्षो से यहाँ वहाँ भटक रहा…।

एक दिन एक भविष्य वाणी को
सुनकर तू ह्रदय घात को सह गया।
तेरी आत्मा उन शब्दो को सुनकर
अंदर ही अंदर से हिल गई।
तू यहाँ वहाँ क्यों भटक रहा
हे अज्ञानी मानव तू सुन।
तेरी ही घर में प्रभु है और
तू यहाँ वहाँ उन्हें खोज रहा।।
तू वर्षो से यहाँ वहाँ भटक रहा…।।

कहते है माँ के चरणों में
चारों धाम के तीर्थ है।
जो माँ की सेवा करते है
वो ही सुख संमति पाते है।
जो माँ के दिलको दुखते है
वो निश्चित ही नरक में जाते है।
तो तू क्यों मानव जीवन को
व्यर्थ में यू ही गमा रहा।।
तू वर्षो से यहाँ वहाँ भटक रहा
पर प्रभु दर्शन नहीं मिल पाये है।
तेरे ही माँ के चरणों में तुझे
अब प्रभु दर्शन मिल जायेंगे।।

परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) सहित बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहती हैं। ये अपनी लेखनी का जौहर कई मंचों पर भी दिखा चुके हैं। इसी के चलते कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा इन्हें सम्मानित किया जा चुका है। आप मुम्बई के नवभारत टाईम्स में ब्लॉग भी लिखने के साथ-साथ मास्टर ऑफ़ कॉमर्स की शैक्षणिक योग्यता रखने वाले संजय जैन कॊ लेख,कविताएं और गीत आदि लिखने का बहुत शौक है, आप लिखने-पढ़ने के ज़रिए सामाजिक गतिविधियों में भी हमेशा सक्रिय रहते हैं।
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