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जीवन के नित संघर्षों में

प्रशान्त मिश्र
मऊरानीपुर, झांसी (उत्तर प्रदेश)
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कुछ सपने थे जो टूट गए,
कुछ अपने थे जो रूठ गए।
जीवन के नित संघर्षों में,
हम कांच सरीखा टूट गए।

जब बिखरे तो ऐसे बिखरे,
फिर एक कभी भी हो न सके।
माला के मोती मंहगे थे,
हम पक्का धागा हो न सके।
जब वक्त हुआ की हार बनूं,
मैं भी उनका श्रृंगार बनूं।
कच्चे धागे को तोड़ दिया,
वो सारे मोती लूट गए।

कालचक्र के घड़ी की सुइयां,
कुछ ऐसे ही चलती है।
गिरगिट तो बदनाम है केवल,
दुनियां रंग बदलती है।
जिसको चाहा उसको खोया,
हंसना चाहा हरदम रोया।
रिश्ते नाते बने भी ऐसे,
चंद क्षणों में टूट गए।

हम रात जगे और दिन जागे,
जितना जागे उतना भागे।
हम समय का पीछा कर न सके,
हम पीछे वो हरदम आगे।
जो चाहा था वो नहीं मिला,
जो वक्त ने चाहा वही मिला।
पाने खोने की विरहन में,
आंखों से आंसू छूट गए।

कुछ जीत मिली, कुछ हार मिली,
पर सीख यही हर बार मिली।
जो वक्त का मतलब ना समझे,
वस उन्हें वक्त की मार मिली।
वक्त कभी भी मत भूलो,
हरदम खुदमें खुद को ढूंढो।
संघर्ष निरंतर किया सदा,
तो सारे बंधन टूट गए।

कुछ संघर्षों में मिले नए,
कुछ संघर्षों में छूटे भी।
कुछ पाने को लालायत थे,
कुछ अक्सर हमसे रूठे भी।
खुशियों की दरकार थी जब,
तब गम की ही बौछार मिली।
पैरों में छाले हुए मगर,
कदमों को भी रफ्तार मिली।
मंज़िल तक ले जाने वाले,
वो सारे रस्ते रूठ गए।
कुछ सपने थे जो टूट गए…

परिचय :-  प्रशान्त मिश्र
निवासी : ग्राम पचवारा पोस्ट पलरा तहसील मऊरानीपुर झांसी उत्तर प्रदेश
शिक्षा : बी.एस.सी., डी.एल.एड., एम.ए (राजनीतिक विज्ञान)

घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।

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