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दोहाष्टक

भीमराव झरबड़े ‘जीवन’
बैतूल (मध्य प्रदेश)
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यौवन रस बरसा मगर, हुई न प्रीति प्रगाढ़।।
मृदु चुंबन की आस में, दुर्बल हुआ असाढ़।।१

चितवन ने होकर मुखर, बिछा दिया है जाल।
चुग्गा चुगने को प्रणय, खग सा भरे उछाल।।२

मदिर नैन झुकते गये, रक्तिम हुए कपोल।
चुंबन का प्रतिसाद पा, थिरक उठे रमझोल।।३

हृदय पृष्ठ पर प्रीति के, उग आये जलजात।
नैनो से झरने लगे, प्रियता युक्त प्रपात।।४

ले स्वरूप संकल्पना, जोड़ – जोड़ संदर्भ।
शब्द-बीज का प्रस्फुटन, हो जब कवि के गर्भ।।५

धरा मेघ मिल रच रहे, प्रियता के अनुबंध।
रोम-रोम से आ रही, मदिर पावसी गंध।।६

जला दिये तारीफ कर, हीरामन ने दीप।
रत्नसेन मन जा बसा, प्रिय के सिंहल द्वीप।।७

सम्बन्धों के दुर्ग की, कवच बने प्राचीर।
मोती रखे सहेज कर, पड़ी सीप ज्यों नीर।।८

परिचय :- भीमराव झरबड़े ‘जीवन’
निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।

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