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जाने भी दो यार

सरिता चौरसिया
जौनपुर (उत्तर प्रदेश)
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जाने भी दो यार..
छोड़ो ना यार, अब जाने भी दो
कहां तक लेकर चलोगे गिले, शिकवे
एक-दूसरे के बिना तो जी भी ना सकोगे,
कभी खेले थे एक संग,
पकड़ कर जिसकी उंगली
सीखा था एक-एक पग रखना
करता था जो तुम्हारी फिक्र
कभी खुद से भी ज्यादा,
जीता था जो तुम्हारे लिए
कभी खुद से भी ज्यादा
तुम्हारे सपने थे जिसके लिए
उसकी नींद भी थी तुम्हारे लिए,
एक सवाल पूछना खुद से
किसी दिन, गर फुर्सत मिले
दुनियादारी से तो,
खुद को तलाश करने की जेहमत
करना, एक बार ज़रूर
कि नाराजगी तो ठीक है
शिकायतें भी ठीक हैं
पर क्या मुहब्बत से शिकायत
का ओहदा ज्यादा बड़ा है ?
आज हैं कल रहें ना रहें
फिर किससे करोगे शिकायतें
किससे रूठोगे?
अब तो मान भी जाओ
ना रूठो इस तरह
क्या पता फिर मिले न मिले।।

परिचय :- सरिता चौरसिया
पिता : श्री पारसनाथ चौरसिया
शिक्षा : एम. ए. हिंदी (बी.एड.)
जन्म स्थान : जौनपुर (उत्तर प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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