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नारी तू नारायणी

प्रमेशदीप मानिकपुरी
भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़)
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तूफा हो कितने जीवन मे सब सह लेती हो
असहय वेदना सह नव सृजन कर देती हो
जीवन भर सब पर केवल प्यार लुटाती हो
बदले मे कभी कुछ भीं तो नहीं लेती हो

कैसे हो सफर? हर सफर हंस कर लेती हो
नया अंदाज दे सफर आसान कर देती हो
जीवन के पड़ाव सहजता से अपना लेती हो
बदले मे कभी कुछ भीं तो नहीं लेती हो

नवसृजन के कर्ता और खुद ही साक्षी भी
नवविधान तुमसे ही, तुम ही कामाक्षी भी
जाने कितने रूप मे जग कल्याण कर देती हो
बदले मे कभी कुछ भीं तो नहीं लेती हो

नारी तू नारायणी, तूझसे ही हर नार
तू चम्पा, तू चमेली, तू ही है कचनार
बागो को सुमन से सुवासित कर देती हो
बदले मे कभी कुछ भीं तो नहीं लेती हो

किन-२ रूपों मे पूजन करू समझ नहीं आता है
तेरा हर रूप प्रकृति सा सबका भाग्य विधाता है
हर रूप मे तूम तो, जीवन का वर देती हो
बदले मे कभी कुछ भीं तो नहीं लेती हो

परिचय :- प्रमेशदीप मानिकपुरी
पिता : श्री लीलूदास मानिकपुरी
जन्म : २५/११/१९७८
निवासी : आमाचानी पोस्ट- भोथीडीह जिला- धमतरी (छतीसगढ़)
संप्रति : शिक्षक
शिक्षा : बी.एस.सी.(बायो),एम ए अंग्रेजी, डी.एल.एड. कम्प्यूटर में पी.जी.डिप्लोमा
रूचि : काव्य लेखन, आलेख लेखन, विभिन्न कार्यक्रम में मंच संचालन, अध्ययन अध्यापन
कार्य स्थल : शासकीय माध्यमिक शाला सांकरा
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।

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