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भोला आतंकी

विजय गुप्ता
दुर्ग (छत्तीसगढ़)
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भोला दिखने वाला मानुष, दिल से सच्चा नहीं होता।
सीधेपन की आड़ में देखा, खुलासा तक नहीं होता।

वो दुनिया भर की नजरों में, गौ जैसा बन जाता है।
रहस्य भरे तार खुल जाए, आतंकी कहलाता है।

मासूमियत ओढ़े चेहरा, भीतर बहुत दरिंदा है
रखे हैं आतंकी संबंध, जांच काज पेचीदा है

तार जुड़े हुए विदेशों से, फड़कता भी परिंदा है
सत्ता सुरक्षा ढिलाई पाकर, सिद्धू जान गंवाता है

वो दुनिया भर की नजरों में, गौ जैसा बन जाता है
रहस्य भरे तार खुल जाए, आतंकी कहलाता है।

भोला दिखने वाला मानुष, दिल से सच्चा नहीं होता।
सीधेपन की आड़ में देखा, खुलासा तक नही होता।

छापों का भी डर नहीं तनिक, मनुज बनता है सत्कर्मी
राजनीति के दांवपेंच में, बनता धूर्त हठधर्मी

माफिया गैंग के राजदार, जो हत्यारे और कुकर्मी
शासन कानूनों की जकड़न, चोला बाहर आता है

वो दुनिया भर की नजरों में, गौ जैसा बन जाता है।
रहस्य भरे तार खुल जाए, आतंकी कहलाता है।

भोला दिखने वाला मानुष, दिल से सच्चा नहीं होता।
सीधेपन की आड़ में देखा, खुलासा तक नहीं होता।

दशकों से फैलता माफिया, गिरफ्त में ही आएगा
गैंगस्टर सरगना विदेशी, अविलंब फड़फड़ाएगा

सदियों के आक्रांताओं का, पूरा हिसाब आएगा
लड़ना मरना खूनखराबा, निज पुरखों से पाता है

वो दुनिया भर की नजरों में, गौ जैसा बन जाता है।
रहस्य भरे तार खुल जाए, आतंकी कहलाता है।

भोला दिखने वाला मानुष, दिल से सच्चा नहीं होता।
सीधेपन की आड़ में देखा, खुलासा तक नहीं होता।

इल्जाम लगाना करामाती, नेता बनकर ही निपटो
सारे देशविरोध कर्म से, सभी जवाबों में पलटो

बाहुबली धाक सदा दिखती, रहो जेल में या छूटो
सत्य असत्य संग्राम विराम, विजय धर्म सिखलाता है

वो दुनिया भर की नजरों में, गौ जैसा बन जाता है।
रहस्य भरे तार खुल जाए, आतंकी कहलाता है।

भोला दिखने वाला मानुष, दिल से सच्चा नहीं होता।
सीधेपन की आड़ में देखा, खुलासा तक नहीं होता।

परिचय :- विजय कुमार गुप्ता
जन्म : १२ मई १९५६
निवासी : दुर्ग छत्तीसगढ़

उद्योगपति : १९७८ से विजय इंडस्ट्रीज दुर्ग
साहित्य रुचि : १९९७ से काव्य लेखन, तत्कालीन प्रधान मंत्री अटल जी द्वारा प्रशंसा पत्र
काव्य संग्रह प्रकाशन : १ करवट लेता समय २०१६ में, २ वक़्त दरकता है २०१८
राष्ट्रीय प्रशिक्षक : (व्यक्तित्व विकास) अंतराष्ट्रीय जेसीस १९९६ से
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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