Friday, November 15राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

कभी खिलाफ थे…

प्रीतम कुमार साहू
लिमतरा, धमतरी (छत्तीसगढ़)
********************

कभी खिलाफ थे, इश्क में जुदाई के हम !
आज दर्द जुदाई के, गुलाम हो गए हम..!!

ना जी सकते है, न मर सकते है हम !
दर्द जुदाई का, बया न कर सकते है हम..!!

देखे थे सपने बनाने को उन्हें हम-दम !
सपने तो आज भी है, पर टूट गए हम..!!

साथ मिलकर पेड़ो में लिखे थे जो नाम !
वो नाम आज भी है, पर छूट गए हम..!!

ना अपना, ना पराया कह सकते है उन्हें !
साथ जीने मरने की कसमें खाए थे हम..!!

कभी पास थे उनके, अब दूर हो गए हम
इश्क की गलियों में, मशहूर हो गए हम..!!

साथ मिलकर बिताये है हमने जो लम्हें
याद कर उन्हें अश्क में डूब जाते है हम..!!

इश्क से पहले रंगीन थी जिंदगी हमारी !
अब जिंदगी तो है, पर रंगहीन हो गए हम..!!!

कैसे कह दूँ उनसे हमारा वास्ता ना रहा
कुछ पल सही साथ तो चलें थे हम…!!!

परिचय :- प्रीतम कुमार साहू (शिक्षक)
निवासी : ग्राम-लिमतरा, जिला-धमतरी (छत्तीसगढ़)
घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें …🙏🏻

आपको यह रचना अच्छी लगे तो साझा अवश्य कीजिये और पढते रहे hindirakshak.com राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच से जुड़ने व कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने चलभाष पर प्राप्त करने हेतु राष्ट्रीय  हिन्दी रक्षक मंच की इस लिंक को खोलें और लाइक करें 👉 👉 hindi rakshak manch  👈… राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच का सदस्य बनने हेतु अपने चलभाष पर पहले हमारा चलभाष क्रमांक ९८२७३ ६०३६० सुरक्षित कर लें फिर उस पर अपना नाम और कृपया मुझे जोड़ें लिखकर हमें भेजें…🙏🏻.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *