हरिदास बड़ोदे “हरिप्रेम”
गंजबासौदा, विदिशा (मध्य प्रदेश)
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मैं क्या हूं, मैं क्यों रो पड़ा,
मैं क्या हूं, मैं क्यों हस रहा।
मैं कुछ नहीं, मेरा अस्तित्व है क्या,
मैं कुछ नहीं, मेरा अस्तित्व है क्या।
“मैं कैसे कहूं, किससे कहूं,
कोई अपना पराया, लगने लगा।”
मैं कुछ नहीं, मेरा अस्तित्व है क्या,
मैं कुछ नहीं, मेरा अस्तित्व है क्या…।।मान भी जा, ऐ दिल ना हो दुखी,
मेरा होना, ना होना एक जैसा।
“मैं कैसे कहूं, किससे कहूं,
कोई अपना पराया, लगने लगा।”
मेरा दिल रोये, मेरा अस्तित्व है क्या,
मैं कुछ नहीं मेरा अस्तित्व है क्या।
मैं कुछ नहीं मेरा अस्तित्व है क्या…।।जाना अनजाना सा, सपना लगे,
मैं अपना कहने, कहते चला।
“मैं कैसे कहूं, किससे कहूं,
कोई अपना पराया, लगने लगा।”
मेरा मन तड़पे, मेरा अस्तित्व है क्या,
मैं कुछ नहीं, मेरा अस्तित्व है क्या।
मैं कुछ नहीं, मेरा अस्तित्व है क्या…।।बेगाना पराया मैं, कैसे हुआ,
मैं किसका हूं, कौन मेरा हुआ।
“मैं कैसे कहूं, किससे कहूं,
कोई अपना पराया, लगने लगा।”
मैं बेचारा नहीं, मेरा अस्तित्व है क्या,
मैं कुछ नहीं, मेरा अस्तित्व है क्या।
मैं कुछ नहीं, मेरा अस्तित्व है क्या…।।अंखियों में आंसू, इंतजार करे,
कोई हो तो सही, जो पोंछ सके।
“मैं कैसे कहूं, किससे कहूं,
कोई अपना पराया, लगने लगा।”
मेरे नैनन तरसे, मेरा अस्तित्व है क्या।
मैं कुछ नहीं, मेरा अस्तित्व है क्या।
मैं कुछ नहीं, मेरा अस्तित्व है क्या…।।मैं क्या हूं, मैं क्यों रो पड़ा,
मैं क्या हूं, मैं क्यों हस रहा।
मैं कुछ नहीं, मेरा अस्तित्व है क्या,
मैं कुछ नहीं, मेरा अस्तित्व है क्या।
“मैं कैसे कहूं, किससे कहूं,
कोई अपना पराया, लगने लगा।”
मैं कुछ नहीं, मेरा अस्तित्व है क्या।
मैं कुछ नहीं, मेरा अस्तित्व है क्या…।।
परिचय :- हरिदास बड़ोदे “हरिप्रेम”
निवासी : गंजबासौदा, जिला- विदिशा (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।
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