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ज्ञान की ज्योति

योगेश पंथी
भोपाल (भोजपाल) मध्यप्रदेश
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ज्ञान की जोत न जलती तो
जीवन उजियार नही होता
प्रथम शिक्षक कौन होता
गर माँ का प्यार नही होता

कानो मे लोरी गा गा कर
जिसने मुझको दीक्षा दी
प्रथम गुरु तो माँ ही है
जिसने शब्दो की शिक्षा दी

जिसके ममता दुलार से
मन मे भाव यही आया
मेरे होटों पे सबसे प्यारा
पहला अक्षर माँ आया

उसके शिक्षक होने का
उसको ये परीणाम मीला
मुझे मिली माँ गुरु रूप मे
उसको माँ का मान मिला

उसकी सूरत के भावो से
मैने हंसना रोना सीखा
उसकी उंगली थाम के ही
धरती पर चलना सीखा

क्या होता है सही गलत
माँ ने ही सिखलाया है
हर पथ पर हर एक जगह
जीने का ढंग बतलाया है

हर विपदा हर एक खुशी
सहना माँ से ही सीखा है
माता से ही इस जग मे
जीने का समान मिला है

माता ने ही तो मन मे
मेरे सुंदर शब्द उगाए है
मेरे सम्मुख स्नेह भरे
सिर्फ शब्द ही लाये है

उन शब्दो से ही मेरे
जीवन को संस्कार मिला है
गागर सदा भारी रेह्ती है
माँ से इतना प्यार मिला है

परिचय :- योगेश पंथी
निवासी : टीलाजमालपुरा भोपाल (भोजपाल) मध्यप्रदेश
राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच से लेखन यात्रा प्रारंभ ….
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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