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माता तुलसी पतित पावनी

अंजनी कुमार चतुर्वेदी
निवाड़ी (मध्य प्रदेश)
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हर घर पूजित होती तुलसी,
वेद पुराणों सी पावन।
यत्र, तत्र, सर्वत्र विराजित,
तुलसी है प्रिय मनभावन।

विष्णुप्रिया, प्रिय सालिग्राम की,
ठाकुर भोग लगाते।
तुलसी घर में रोपण करके,
सुख सौभाग्य जगाते।

जनमानस में पूजी जाती,
हर गुण से संपन्न।
जिस घर होती भाग्य जगाती,
जो धनहीन विपन्न।

पूर्व जन्म में वृंदा थी यह,
जालंधर को ब्याही।
परम भक्त थी हरि विष्णु की,
भगवत पथ की राही।

अत्याचारी जालंधर से,
सभी देव जब हारे।
विष्णुधाम जाकर तब सब ने,
अति प्रिय बचन उचारे।

छद्म रूप धारण कर प्रभु ने,
वृंदा करी अपावन।
जालंधर को मार दिया तब,
भोले शिव मनभावन।

श्राप दिया वृंदा ने हरि को,
सालिग्राम बनाया।
जड़बत हुई समूची सृष्टि,
अंधकार सा छाया।

सब देवों ने करी प्रार्थना,
तब वृंदा थी मानी।
काला मुख कर श्राप हटाया,
देव सभा हरसानी।

अगले जन्म बनी वह तुलसी,
व्याह हुआ श्री हरि से।
पूजा सभी पुरुष करते हैं,
वंचित नारी कर से।

औषधि गुण से परिपूरित यह,
रोग विनाशक होती।
भवसागर से पार लगाती,
हर बाधा भी खोती।

चार पहर चौंसठ घड़ियों में,
प्राणवायु देती है।
घातक और प्रदूषित वायु,
स्वयं सोख लेती है।

धार्मिक वैज्ञानिक दृष्टि से,
पूजनीय पावन है।
वृंदावन जिस घर में होता,
लगता मनभावन है।

माता तुलसी पतित पावनी,
कष्टों को हरती है।
सारी पीड़ा हर कर खुशियाँ,
जीवन में भरती है।

परिचय :अंजनी कुमार चतुर्वेदी
निवासी : निवाड़ी (मध्य प्रदेश)
शिक्षा : एम.एस.सी एम.एड स्वर्ण पदक प्राप्त
सम्प्रति : वरिष्ठ व्याख्याता शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय क्रमांक २ निवाड़ी
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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