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ग़ज़ल

रचयिता : शरद जोशी “शलभ”

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सुनी तो है मगर देखी नहीं है।
ख़ुशी इस राह से गुज़री नहीं है।।

उजड़ती बसती रहती है ये दुनिया।
किसी की ला फ़ना हस्ती नहीं है।।

यहाँ है कौनसा दिल ग़म से ख़ाली
जिगर किसका यहाँ ज़ख़्मी नहीं है।।

मये कौसर से जो पैमाना भर दे।
यहाँ ऐसा कोई साक़ी नहीँ है।।

ग़रज़मन्दी समझ बैठे जिसे वो।
हलीमी इस क़दर अच्छी नहीं है।

“शलभ” ने ख़ुद ही ख़ुद्दारी सम्भाली।
किसी की़मत अना बेची नहीं है।।

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परिचय :- धार जिला धार (म.प्र.) निवासी शरद जोशी “शलभ” कवि एवंं गीतकार हैं।
विधा- कविता, गीत, ग़ज़ल।
आप विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं द्वारा वाणी भूषण, साहित्य सौरभ, साहित्य शिरोमणि, साहित्य गौरव सम्मान से सम्मानित हैं।
म.प्र. लेखक संघ धार, इन्दौर साहित्य सागर इन्दौर, भोज शोध संस्थान धार आजीवन सदस्य हैं। आप सेवानिवृत्त शिक्षक हैं, अखिल भारतीय साहित्य परिषद धार (म.प्र.) के जिला अध्यक्ष हैं व वर्तमान में साहित्य सेवा में निरंतर संलग्न हैं।


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