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अवगुंठन के खोल पट

भीमराव झरबड़े ‘जीवन’
बैतूल (मध्य प्रदेश)
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अवगुंठन के खोल पट, सुधियों की बारात।
थिरकी मानस पृष्ठ पर, जैसे निविड़ प्रपात।।१

अधर शलाका से प्रिया, गई अधर रस घोल।
गुलमोहर पी मत्त है, करता कलित किलोल।।२

आतप का अवदान पा, तन हो गया निहंग।
मन का वृंदावन रँगा, गुलमोहर के रंग।।३

अनुरंजक अवसाद ने, किये स्वप्न चैतन्य।
भिगो गया अंतस पटल, सुधियों का पर्जन्य।।४

आशाएँ बूढ़ी हुई, साँझ गई जब हार।
नव प्रभात ने फिर किया, किरणों से शृंगार।।५

पुष्प प्रभाती प्रीति के, चुनकर लायी भोर।
अवसंजन की कामना, मुखर हुई पुरजोर।।६

हुआ समर्पित भाव से, प्रणयन जो अनुमन्य।
मरुथल मन महका गये, सुधियों के पर्जन्य।।७

परिचय :- भीमराव झरबड़े ‘जीवन’
निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।

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