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पथ तुम्हारा प्रशस्त है

डॉ. निरुपमा नागर
इंदौर (मध्यप्रदेश)
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श्रम पथ पर चलने वाले
स्वेद बिंदु से धरा चमकाते हो
रक्त बिंदु तुम्हारी
नव निर्माण का आव्हान करे
खेत, खलिहान, सड़क, कल
कारखानों का संधान करे
सीने में धधकती ज्वाला लिए
जहां भी धरते तुम पग
बन जाता है वहीं
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ
हार न तुमने कभी मानी
चले जब-जब
रोज़ी रोटी की शान बनी
श्रम वीर बन तुम मुसकाए
निज गौरव को भी समेट लाए
पथ तुम्हारा प्रशस्त है
श्रम की भागीदारी का शोर है
रज को जब तुम स्वर्ण बनाते हो
क्यूं दामन अपना बिछाते हो
श्रम पथ पर चलने वाले
स्वेद बिंदु से धरा
तुम चमकाते हो ।।

परिचय :- डॉ. निरुपमा नागर
निवास : इंदौर (मध्यप्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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