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मैं क्या पाठ पढ़ाऊँ उन बच्चों को …

ललिता शर्मा ‘नयास्था’
भीलवाड़ा (राजस्थान)
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मैं क्या पाठ पढ़ाऊँ उन बच्चों को,
जिनको आज़ादी का एहसास नहीं।
मातृभूम हेतु मर मिटने वाले,
अब लगते इनको ख़ास नहीं॥

कोख़ में पलते बच्चे कहते थे,
माँ मुझको धरती पर क़ुर्बान करो।
पुष्प सरीखा बलिवेदी पर चढ़ जाऊँ तो,
गर्भ पे अपने अभिमान करो॥
अब भ्रूण को मिलता वो रसपान कहाँ,
आँवल में भी वो त्रास नहीं।
मातृभूम हेतु मर मिटने वाले,
अब लगते इनको ख़ास नहीं॥

जो थे मात-पिता के राज दुलारे,
वो घर की चौखट भूल गये।
पकी हुई फसलों-से उनके बच्चे,
फाँसी के फंदे झूल गये॥
नवयुग की इस पीढ़ी को देखो,
रत्ती भर मन में इनके वो उल्लास नहीं॥
मातृभूम हेतु मर मिटने वाले,
अब इनको लगते ख़ास नहीं॥

ये दक्खिन वाली चलते हैं चाल,
परकटे-से बिखरे-बिखरे बाल।
अब बिगड़ गया है माँ का लाल,
और सिमट गया है इनका जीवन-काल॥
रक्त सनी उन तारीख़ों का,
भाता इनको इतिहास नहीं॥

मैं क्या पाठ पढ़ाऊँ उन बच्चों को,
जिनको आज़ादी का एहसास नहीं।
मातृभूम हेतु मर मिटने वाले,
अब लगते इनको ख़ास नहीं॥

परिचय :-  ललिता शर्मा ‘नयास्था’
निवासी : भीलवाड़ा (राजस्थान)
घोषणा पत्र :  मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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