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शतरंजी चालें

अंजनी कुमार चतुर्वेदी
निवाड़ी (मध्य प्रदेश)
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जीवन की *शतरंजी* चालें,
हरदम चलना पड़ती।
जैसी चाल कोई पड़ जाए,
वैसा जीवन गढ़ती।

भारतवंशी *चौरंगी* ने,
बौद्धिक खेल बनाया।
स्वस्थ मनोरंजन होता था,
यह *चतुरंग* कहाया।

चौंसठ खाने इसमें होते,
यह *चौपाट* कहाती।
सोलह-सोलह मोहरे लेकर,
भिड़ते हैं दो साथी।

श्वेत- श्याम इसके पाँसे हैं,
जो *मोहरे* कहलाते।
इन्हें खेलने वाले जन भी,
गोरे काले कहलाते।

*प्यादे* सा जीवन बचपन का,
धीरे-धीरे चलता ।
चाहे जितना पानी डालो,
वृक्ष समय पर फलता।

युवा काल में होता मानव,
बिल्कुल *घोड़े* जैसा।
कर दिन रात परिश्रम भारी,
खूब जोड़ता पैसा।

युवा काल जाते ही जीवन,
होता जैसे *हाथी*।
खाता, पीता, मौज मनाता,
परिजन, संगी -साथी।

इसी समय मानव जीवन में,
बजे खुशी का बाजा।
मानव तभी समझता खुद को,
है शतरंजी *राजा*।

रहता है *वजीर* सेवा में,
*सैनिक* करें सुरक्षा।
रुतवे वाला ऐसा जीवन,
सबको लगता अच्छा।

जीवन ज्यों,ज्यों आगे बढ़ता,
फिर स्वतंत्रता खोती।
बोझ लाद मानव यों फिरता,
दशा *ऊँट* सी होती।

हर *मोहरे* का अपना जीवन,
अपनी अपनी चालें।
करने को जीवन की रक्षा,
रखना पड़ती ढ़ालें।

जीवन की *बिसात* पर जिसने,
सही चल दिए पाँसे।
सदा सफलता उसको मिलती,
यही सुना था *माँ* से।

परिचय :अंजनी कुमार चतुर्वेदी
निवासी : निवाड़ी (मध्य प्रदेश)
शिक्षा : एम.एस.सी एम.एड स्वर्ण पदक प्राप्त
सम्प्रति : वरिष्ठ व्याख्याता शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय क्रमांक २ निवाड़ी
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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