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समंदर को खल गई

शरद जोशी “शलभ”
धार (म.प्र.)
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इतनी सी बात थी जो समंदर को खल गई।
काग़ज़ की कश्ती कैसे भँवर से निकल गई।।

पहले ये पीलापन तो नहीं था गुलाब में।
लगता है अब ज़मीन की मिट्टी बदल गई।।

अब पूरे तीस दिन की रियायत मिली उसे।
फिर मेरी बात अगले महीने पे टल गई।।

अशआर में बचे हैं मुहब्बत के हादसे।
वरना मेरी कहानी मेरे साथ जल गई।।

कल तक तो बेगुनाह समझते थे सब मुझे।
क्यों राय आज सारे जहाँ की बदल गई।।

मयख़ाने की डगर से जो मेरा गुज़र हुआ।
वाइज़ की बात रह गई साक़ी की चल गई।।

रंजो अलम हैं साथ ज़माने हुए “शलभ”।
अब तो ये ज़िन्दगी इसी साँचे में ढल गई।।

परिचय :- धार (म.प्र.) निवासी शरद जोशी “शलभ” कवि एवंं गीतकार हैं।
विधा- कविता, गीत, ग़ज़ल।
प्राप्त सम्मान-पुरस्कार- राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान एवं विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं द्वारा वाणी भूषण, साहित्य सौरभ, साहित्य शिरोमणि, साहित्य गौरव सम्मान से सम्मानित हैं।
म.प्र. लेखक संघ धार, इन्दौर साहित्य सागर इन्दौर, भोज शोध संस्थान धार आजीवन सदस्य हैं। आप सेवानिवृत्त शिक्षक हैं, अखिल भारतीय साहित्य परिषद धार (म.प्र.) के जिला अध्यक्ष हैं व वर्तमान में साहित्य सेवा में निरंतर संलग्न हैं।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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