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छल-कपट

डॉ. संगीता आवचार
परभणी (महाराष्ट्र)
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छल-कपट दुनिया के देखते रहते हो!
क्या आज कल तुम सोये हुए रहते हो?
क्या तुम्हारी रूह जरा भी नहीं कांपती?
घनघोर अन्याय के प्रत्यक्ष दर्शी होते हो!
क्या कर बैठे हो दुर्योधनों से मिली भगत?
या हफ्ता वसूली की आ गयी तुमपे भी नौबत?
तुम्हारा अस्तित्व दिखता नहीं आज कल,
भेड़ियों से बचने की चल रही है मशक्कत!
द्रौपदी कितनी और जुएं मे है हारनी?
कितनी गांधारी को आँखों पे है पट्टी बांधनी?
गिरधारी आँख कब खुलेगी तुम्हारी?
कितने महाभारत की मंशा और है बाकी?
जाग जा… कर दे कुछ ऐसी अब करनी,
राक्षसों की कर दे अब खत्म तू कहानी!
या तो फिर कह दे तू दुनिया मे है नहीं,
तेरे पास किसी समस्या का हल नहीं!

परिचय :- डॉ. संगीता आवचार
निवासी : परभणी (महाराष्ट्र)
सम्प्रति : उप प्रधानाचार्य तथा अंग्रेजी विभागाध्यक्ष, कै सौ कमलताई जामकर महिला महाविद्यालय, परभणी महाराष्ट्र
घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है।


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