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सपने मनु शतरूपा के

सरला मेहता
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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कभी मिले थे हम तुम
नादान थे अनजान थे
सच में हम थे दो दीवाने
खुली आँखों के वे सपने
तेरे मेरे नहीं, वे थे अपने
*सुदूर फैली वादियों में
फूलों का शहर छोटा सा
पेड़ो के झुरमुठ से घिरा
प्यारा नायाब सा घरौंदा
मनु और शतरूपा का हो
*झरोखों रोशनदानों से
रवि किरणें फैल जाएँगी
हमारे घर के हर कोने में
पंछियों की चहचहाट सुन
चाय पीते खूब बतियाएँगे
*मनु हवाई किस उड़ाते
चल देंगे अपने काम पर
कान्हा को पूजते झुलाते
खो जाऊँगी मैं सपनों में
कब गूँजेगी किलकारियां
*हमारी बगिया में खिलेंगे
प्रसून और पर्णा दो फ़ूल
महकेगा आशियाँ न्यारा
बच्चे भी मंजिलें तलाशते
नए नीड़ों को उड़ जाएंगे
*ऐनक चढाए हकलाते
अँगीठी के पास बैठ कर
गुम खयालों में ख़्वाबों के
कॉफी की चुस्कियों में
मनु शतरूपा खो जाएँगे

परिचय : सरला मेहता
निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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