अमिता मराठे
इंदौर (मध्य प्रदेश)
********************
शरीर और आत्मा दोनों ही अलग हैं। लेकिन आत्मा को कर्म में आने के लिए शरीर का आधार लेना ही पड़ता है। काया के सौन्दर्य को इतना महत्व देने के बजाय आचरण और व्यवहार अधिक महत्वपूर्ण होता है। बाहरी सौन्दर्य पर लोग भ्रमर के भांति आकर्षित होते हैं।
यदि आचरण सही है तो उसका चरित्र ही सत्य सौन्दर्य है। इस सोच के साथ बेला पति रोहन और माँ को तीव्रता से याद कर रही थी।
आफीस से लौटी बेला व्याकुल होकर सोफे पर निढाल बैठी थी। आज आफिसर श्रेयस का व्यवहार चूभ रहा था। वहीं रोहन के शब्द कानों पर टकरा रहे थे। बेला, “इतनी चंचल वृत्ति काम की नहीं। सौन्दर्य का नशा झटके में कोई उतार न दे।”
वह बेसब्री से रोहन की राह देख रही थी। शायद उसे देखते ही मन हल्का हो जाय। इसी अपेक्षा से उसे एकान्त प्रिय लग रहा था। कई प्रश्न उभर रहें थे। उसके उत्तर भी वही खोज रही थी। मुझे सबसे संवाद साधना अच्छा लगता है। इसमें क्या बुराई है?
उसके अश्क ही उससे बात कर रहे थे।
यह दुनिया बड़ी विचित्र है। “नहीं, तू विचित्र है” आज़ यदि चुलबुली बन श्रेयस के केबिन में नहीं जाती तो वह ऐसी बेहूदी हरकत नहीं करता।
उसी समय उसके कानों में माँ के बोल गूंजने लगे, “बेला अकेले में किसी से सामना मत करो। भले ही तू साफ दिल होगी लेकिन सामने वाला गलत लुफ्त उठा सकता है। “जैसे खिले पुष्प को कोई इंसान तोड़ लेता है, फिर मनचाहे सुगंध लेकर मसलकर फ़ेंक देता है।
“उसका रोम-रोम सिहर उठा! तन के रोंये खड़े हो गये। दोनों घुटनों के बीच गर्दन रखकर बैठे बेला को एक घंटा हो चुका था। रोहन ने दोपहर में ही बता दिया था कि मार्च क्लोजिंग के कारण वह देर से आयेगा।
भगवान ने मुझे सुन्दर बनाया स्वभाव भी नाम के अनुकूल हर एक से घुलने-मिलने जैसा बना दिया था। नौकरी भी पब्लिक आफीसर के पद पर थी। उसने अपने आप से सवाल किया मैंने कोई दुराचार नहीं किया। वैसे भी महिला पुरुष का मिलना-जुलना बुरा क्यों माना जाता है?
अक्सर किसी के भी मिलने पर बेला मधुर मुस्कान बिखेर देती थी। अन्य लड़कियों के भांति शर्माना वह पसंद नहीं करती थी। पापा को बेला से कोई एतराज़ नहीं था। माँ ही लगाम खिंचती रहती थी। बचपन के साथी रोहन से मनपसंद विवाह बंधन में बंध गई थी। लेकिन माँ की जगह रोहन ने ले ली थी। वह दिन में एक छोटे बच्चे को कहते हैं ऐसी समझाइश युक्ति से देकर ही आफीस जाता था। क्यों कि संकोच, लज्जा, के व्यवहार से बेला नफ़रत करती थी। दिल खुलास ज़वाब देने में भी तेज़ थी।
आक्रोश से चिल्लाते बेला ने अपने आप से पूछा, “बताओं फिर वह निडरता कहां चली गई। जब श्रेयस सर ने मुझे आलिंगन में ले लिया, तो उनकी हिम्मत को मैंने तमाचे से जवाब क्यों नहीं दिया?
आसपास के लोग उसका मनमौजी स्वभाव बुरी नजरों से देखने लगे। बेला चुपके से अफवाहों की शिकार होने लगी थी। शादी के पहले भी पापा ने उसे छिछोरेपन के स्वभाव के कारण पीटा था। माँ के बचाव करने पर छुटकारा हुआ था।
रोहन कहता रहता था “नारी जितनी पर्दे में रहेगी उतनी उसकी उतनी गरिमा बढ़ती है। उसे अपनी अमूल्य मान मर्यादा खोनी नहीं चाहिए। रोहन को आफीस, समाज, घर से गुजरते लोगों की फब्तियां सुनाई देने लगी थी। एक दिन बेला के कानों पर अजीब वार्ता ने आक्रमण किया। बेहूदगी की हद हो गई थी। बेला ने मोबाइल के मेल फिमेल सभी नम्बर डिलीट कर दिये। हाथ मुंह धोकर फ्रेश हुई। खाना बनाया शुद्ध मन से, कोई संकल्प विकल्प उसकी बुध्दि में नहीं थे।
रोहन के आते ही, बेला ने मेज पर भोजन को करिने से सजाकर रख दिया था। लेकिन वह मौन थी। रोहन ने बेला का हाथ पकड़कर समीप खींच लिया। कंधे पर हाथ रखकर प्यार से पूछा, “सब कुछ ठीक है ना! तुम्हारा मौन भी बहुत कुछ कह रहा है।”
बेला को लगता है रोहन ही मेरी प्रतिष्ठा को बचा लगा। मेरे जीवन पुष्प की सुगंध कड़वी नहीं है, मीठी और मधुर है। रोहन अपने हाथों से बेला को भोजन खिला रहे थे। आत्म संघर्ष से मुक्त होती बेला प्रसन्नता से रोहन को देख रही थी। उसका मौन कान पकड़कर कह रहा था, “रोहन अब मैं मान मर्यादा के अंदर ही रहूंगी। “वाकई में आज की दुनिया से बचने का यही उपाय है।
दोनों ने ही भोजन ग्रहण कर विशेष तृप्ति का अनुभव किया।
परिचय :- अमिता मराठे
निवासी : इन्दौर, मध्यप्रदेश
शिक्षण : प्रशिक्षण एम.ए. एल. एल. बी., पी जी डिप्लोमा इन वेल्यू एजुकेशन, अनेक प्रशिक्षण जो दिव्यांग क्षेत्र के लिए आवश्यक है।
वर्तमान में मूक बधिर संगठन द्वारा संचालित आई.डी. बी.ए. की मानद सचिव।
४५ वर्ष पहले मूक बधिर महिलाओं व अन्य महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए आकांक्षा व्यवसाय केंद्र की स्थापना की। आपका एकमात्र यही ध्येय था कि महिलाओं को सशक्त बनाया जा सके। अब तक आपके इंस्टिट्यूट से हजारों महिलाएं सशक्त हो चुकी हैं और खुद का व्यवसाय कर रही हैं।
शपथ : मैं आगे भी आना महिला शक्ति के लिए कार्य करती रहूंगी।
प्रकाशन :
१ जीवन मूल्यों के प्रेरक प्रसंग
२ नई दिशा
३ मनोगत लघुकथा संग्रह अन्य पत्र पत्रिकाओं एवं पुस्तकों में कहानी, लघुकथा, संस्मरण, निबंध, आलेख कविताएं प्रकाशित राष्ट्रीय साहित्यिक संस्था जलधारा में सक्रिय।
सम्मान :
* मानव कल्याण सम्मान, नई दिल्ली
* मालव शिक्षा समिति की ओर से सम्मानित
* श्रेष्ठ शिक्षक सम्मान
* मध्यप्रदेश बधिर महिला संघ की ओर से सम्मानित
* लेखन के क्षेत्र में अनेक सम्मान पत्र
* साहित्यकारों की श्रेणी में सम्मानित आदि
आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें …🙏🏻
आपको यह रचना अच्छी लगे तो साझा अवश्य कीजिये और पढते रहे hindirakshak.com राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच से जुड़ने व कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने चलभाष पर प्राप्त करने हेतु राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच की इस लिंक को खोलें और लाइक करें 👉 hindi rakshak manch 👈… राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच का सदस्य बनने हेतु अपने चलभाष पर पहले हमारा चलभाष क्रमांक ९८२७३ ६०३६० सुरक्षित कर लें फिर उस पर अपना नाम और कृपया मुझे जोड़ें लिखकर हमें भेजें...🙏🏻.