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काश्मीर की आत्मव्यथा

डाॅ. रेश्मा पाटील
निपाणी, बेलगम (कर्नाटक)
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नभ उदास है धरती सूनी
तीनों लोक सुनो त्राहि पुकारे

कर्म नहीं है, धर्म नहीं है
इन्सा का कोई भरम नहीं है

चहुँओर है छाया अंधेरा
माँगे लहू है जगत ये सारा

क्यो विफल हुई कश्यप की तपस्या
स्वर्ग बसाया नर्क बना है

ईश्वर अल्लाह दो नाम तिहारे
फिर क्यों इनमें जंग छिड़ी है

तेरी रचना न तुझसे सँभलती
ये कैसी माया है बरसती

क्या व्यर्थ हुआ है बलिदानी येशू
स्तंभित खडी गौतम की वाणी

मानव में दानव संचारे
लुप्त हुई मानवता सारी

कब आओगे कहो कन्हाई
गीतावाला वचन निभाने

परिचय :-  डाॅ. रेश्मा पाटील
निवासी : निपाणी, जिला- बेलगम (कर्नाटक)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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