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गृह वाटिका

सुरेश चन्द्र जोशी
विनोद नगर (दिल्ली)
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गृह वाटिका के पुष्प तुम,
ऐसे ही खिलते रहना |
मेरे जीवन का सार तुम,
ऐसे ही दिखते रहना ||
गृह वाटिका….
आत्म मूल के अंकुर तुम,
प्रस्फुटित होते रहना |
श्वेद रक्त से सिंचित तुम,
विकसित होते रहना ||
गृह वाटिका…..
षड् ऋतु में मेरे पुष्पो तुम,
सुगंधित सदा ही रहना |
धरा तपे या शीतलहर हो तुम,
प्रमुदित सदा ही रहना ||
गृह वाटिका…..
ताप सहन कर ग्रीष्म का तुम,
बर्षा में खिलते रहना |
और सहन कर शीतलहर तुम,
बसंत में खिलते रहना ||
गृह वाटिका….
गृह वाटिका के पुष्प तुम,
ऐसे ही खिलते रहना |
मेरे जीवन का सार तुम,
ऐसे ही दिखते रहना ||
गृह वाटिका…..

परिचय :- सुरेश चन्द्र जोशी
शिक्षा : आचार्य, बीएड टीजीटी (संस्कृत) दिल्ली प्रशासन
निवासी : विनोद नगर (दिल्ली)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।

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