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तीन परियाँ

सरला मेहता
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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बालसुलभ रुचियों का भी एक अनोखा संसार है। कोई खिलौनों व मित्रों के साथ गपशप में मस्त रहते हैं तो किसी को गुड़ियों को सजाने में मजा आता है। परंतु मेरे अनमोल खिलौने थे परियों सी खिलखिलाती नन्हीं मुन्नी बच्चियाँ। बस मुझे ये कहीं भी मिल जाती पड़ोस या रिश्तेदारों में, उन्हें बहलाना व उनका ध्यान रखना मेरी दिनचर्या बन जाती थी।
विवाहोपरांत मेरा सपना था कि मेरी प्रथम सन्तान बेटी ही हो। माँ बनने के अहसास से ही मैं आश्वस्त थी कि एक नाज़ुक सी कली ही मेरी बगिया में महकने वाली है। दिनरात सुंदर परियों के चित्रों से घिरी रहती और उन्हीं के सपने देखती थी।
उसी दौरान मेरी मौसेरी बहन को पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई। और मुझे मिल गई मेरी परी। घर के बुजुर्गों की प्रतिक्रिया थी, “ये कैसा ईश्वर का न्याय? दोनों बहनें साथ साथ पली बढ़ी, एक को बेटा व दूसरी को बेटी क्यूँ?” किन्तु मेरी खुशी तो सातवें आसमान पर थी। मेरे मन की मुराद जो पूरी हो गई थी।
अपनी परी को अभी जी भर निहारा भी नहीं था क्योंकि उसे नर्सरी में रखा था। अन्य नवजातों की तरह वह रोई जो नहीं थी। शायद मुझे हँसाने वाली ने रोना मुनासिब नहीं समझा हो। लोग बेबी की तारीफ़ के पुल बाँध रहे थे। चाँदी सा रंग, सुनहरे घुंघराले बाल व सुघड़ नैन नक्श…सब कुछ वैसा ही जैसा मैंने सोचा था। और उसके पुलिसवाले पापा को हिदायतें मिल रही थी कि बेटी के आगे पीछे गार्ड्स रखने होंगे।
मेरी परिकथा अभी अधूरी है। इस कहानी की और भी कड़ियाँ शेष हैं। परी को एक प्यारा सा भाई मिला। दोनों के ब्याह सम्पन्न हुए। मेरी परी अब स्वयं भी माँ बननेवाली थी। दामाद का तर्क था कि बेटी ही दो कुलों की धुरी होती है।
बेटी ही रिश्तों के सफ़ल निर्वहन तथा परस्पर सामंजस्य बनाए रखने की मजबूत कड़ी है। और मेरी परी को भी बेटी का उपहार मिला। नानी बनने पर मेरी खुशी क्या बताऊँ, कोई सीमा नहीं। और पहुँच गई अपने कार्यस्थल पर मिठाई का टोकरा लिए। मिठाई बाँटने के बदले में सुनने को मिला, “अच्छा जी तो नाती आया है, बधाई हो।” ऐसा ही होना था क्योंकि मिठाई खिलाने का रिवाज़ पुत्रजन्म पर ही है समाज में।
अरे रे! रुकिए अभी एक कड़ी और शेष है जो मेरी बहु ने रची थी। मेरी सभी परिचित सखियाँ दादियाँ भी बन चुकी थी। तमाम नाती पोते वालियों को सौभाग्यशालिनी की उपाधि मिल चुकी थी। मुझे भी लोग तसल्ली जताने से कहाँ चूकने वाले थे, “चलो बेटी को ना सही, बहू को अवश्य बेटा होगा।”
परन्तु ढेरों खुशियाँ लिए तीसरी परी को ही आना था। फ़िर मैंने सबका मुँह मीठा कराया और वही जुमला सुनने को मिला, “क्या पोता हुआ है?”

परिचय : सरला मेहता
निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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