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झांसी के मैदानों में

साक्षी उपाध्याय
इन्दौर (मध्य प्रदेश)

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उन झांसी के मैदानों में
यूं लड़ी वीर वह रानी,
पर वो कहां जानती थी,
अपना स्वाभिमान बचाने,
पड़ेगी उसको जान गवानी।
घोड़े पर हो सवार,
चल दी वह स्वतंत्रता सेनानी।
बालक को बांधा था पीठ पर,
थी वह ऐसी दीवानी।।

मानो काली का खप्पर भरने की,
उसने सौगंध खाई थी,
अंग्रेजी दुश्मनों गद्दारों को,
औकात दिखाई थी।
विवाह के समय वह,
शायद थोड़ी घबराई हो,
पर ऐसा एक क्षण भी ना था,
जब वह युद्ध में घबराई थी।।

वह स्वयं में ही कालका थी,
रणचंडी खप्पर वाली थी,
केवल युद्ध कला में ही नहीं
अपितु रूप में भी मत वाली थी,
वीर योद्धा की भांति लड़कर, अंततः
उसने वीरगति पाली थी।।

ऐसी लड़ी वीर वह जैसे
दरिया हो तूफानी,
आज भी दोहराते हैं
हम उसकी युद्ध कहानी।
मणिकर्णिका नाम था उसका
थी झांसी की रानी,
सदियां याद रखेंगी बेशक
उसकी कुर्बान जवानी।
जय हो जय हो मणिकर्णिका,
जय झांसी वाली रानी।।

परिचय :- साक्षी उपाध्याय
निवास : इन्दौर (मध्य प्रदेश)
उद्घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।

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