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समंदर

समंदर

रचयिता : अर्चना मंडलोई

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क्या समां है, कि बन गया एक समंदर और।
उभर आये जो आँसू तो ,पलको से बाँधा है, एक दरिया और।
दोस्त मेरा जब सरे शाम रूठता है
एक तूफान जनम लेता है ,मेरे अंदर और।
घुटन फीक्र बेवक्त की आवाजे
इसके अलावा होता नही अंदर मेरे कुछ और।
सुबह की पहली किरण,बन जाए कब ख्वाब
ये जिन्दगी का बसेरा है ,सहर कर ले रात भर और।
तारीफ सुन जिन्दगी़ इठला गई ,मूझे देख कतरा सी गई ,
जिस नज़र से मैने उसे देखा,नजर आती गई दूर और।

लेखिका परिचय : इंदौर निवासी अर्चना मंडलोई शिक्षिका हैं आप एम.ए. हिन्दी साहित्य एवं आप एम.फिल. पी.एच.डी रजीस्टर्ड हैं, आपने विभिन्न विधाओं में लेखन, सामाजिक पत्रिका का संपादन व मालवी नाट्य मंचन किया है, आप अनेक सामाजिक व साहित्यिक संस्थाओं में सदस्य हैं व सामाजिक गतिविधियों मे संलग्न।

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