Thursday, November 21राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

साहित्य की सबसे बड़ी धरोहर वसन्त ऋतु

अशोक पटेल “आशु”
धमतरी (छत्तीसगढ़)
********************

“जीवन में उत्साह का प्रतीक- वैदिक साहित्य से लेकर उपनिषद वेद पुराण और महाभारत,रामायण सहित कालिदास और हिंदी साहित्य के इतिहास पर जब हम दृष्टि डालते हैं तो हम यह पाते हैं कि इन सभी कालों के कवियों ने ऋतुओं पर एक से बढ़कर एक सुंदर साहित्य सृजन किया है। पर वसन्त ऋतु के सौंदय पर जो वर्णन हुआ है,वह कहीं और अन्यत्र देखने को नही मिलता। विशेष करके कामदेव की ऋतुराज वसन्त पर जो लेखनी चली है वह साहित्य के इतिहास की अनमोल धरोहर मानी जाती है। जिसने हिंदी को उपकृत ही नही किया बल्कि इसे पुष्पित पल्लवित और सुरभित भी किया है।
इस ऋतु में प्रकृति सोलह सृंगार से युक्त पलास महुए आम की सौरभता मदमस्त कराती सुरभित सुंदरता। फागुन के फाग की मस्ती और रंगीली वातावरण को उत्साह से भर देती है। इस वसन्त का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि इस दिन विद्या दायिनी माँ सरस्वती का जन्म हुआ था। जिसकी आराधना उपासना की जाती है-तभी

निराला ने यह कहा-
“वर दे वीणा/वादिनी वर दे,
प्रिय-स्वतंत्र-नव-अमृत-मंत्र-नव,
भारत मे भर दे।।”

अब दृष्टि डालते हैं महाभारत काल मे जहाँ पर
स्वयं श्री कृष्ण कहते हैं-“
“गायन करने योग्य श्रुतियों में मैं बृहत्साम और छन्दों में गायत्री छन्द हूँ तथा महीनों में मार्गशीर्ष और ऋतुओं में वसन्त मैं हूँ।’

इसी प्रकार संस्कृत रामायण में वाल्मीकि ने कहा है-“
“अयं वसन्त: सौ मित्रे नाना विहग नन्दिता।”

कालिदास ने ‘ऋतु संहार’ में बसंत के आगमन का अद्भुत और सजीव वर्णन किया है-
“द्रुमा सपुष्पा: सलिलं
सपदमंस्त्रीय: पवन: सुगंधि:।

इसी प्रकार बसंत ऋतु का अत्यंत सुंदर वर्णन-
“नव पलाश पलाशवनं पुरः
स्फुट पराग परागत पंवानम्।:
मृदुलावांत लतांत मलोकयत्
स सुरभि-सुरभि सुमनोमरै:।”

आदिकालीन रास-परम्परा में वीसलदेव रासो ने सुंदर प्रणय की गाथा गाई है-
चालऊ सखि!आणो पेयणा जाई,
आज दी सई सु काल्हे नहीं।
पिउ सो कहेउ संदेसड़ा,
हे भौंरा, हे काग।
ते धनि विरहै जरि मुई,
तेहिक धुंआ हम्ह लाग।

एक विरहिणी अपने प्रिय को याद करते हुए कहती है कि-“
हे प्रिये तुम कहाँ गए वसन्त ऋतु आ गई है,तुमसे संयोग नही हुआ,और ग्रीष्म ऋतु आ जायेगी।

इसी प्रकार भक्तिकाल के कवि तुलसी ने भी वसन्त का सजीव चित्रण किया है जिसमे उन्होंने वसन्त को ऋतुपति कहा है-
“सब ऋतु ऋतुपति प्रभाऊ,
सतत बहै त्रिविध बाऊं।
जनु बिहार वाटिका,
नृप पंच बान की।

जायसी ने भी बसंत ऋतु का वर्णन मानवीय उल्लास और विलास के रूप में किया है-
फल फूलन्ह सब डार ओढ़ाई।
झुंड बंधि कै पंचम गाई।
बाजहिं ढोल दुंदुभी भेरी।
मादक तूर झांझ चहुं फेरी।

कवि चतुर्भुजदास ने बसंत की सुंदरता का वर्णन इस प्रकार किया है-
“फूली द्रुम बेली भांति भांति,
नव वसंत सोभा कही न जात।
अंग-अंग सुख विलसत सघन कुंज,
छिनि-छिनि उपजत आनंद पुंज।”

वसन्त वर्णन में रीतिकाल के कवियों ने भी बहुत सुंदर वर्णन किया है। जिसमे आचार्य केशव ने बसंत को दम्पत्ति के यौवन के समान बताया-
“दंपति जोबन रूप जाति लक्षणयुत सखिजन।”

कवि बिहारी संयोग सृंगार के चितेरे माने जाते हैं उनके द्वारा वसन्त के आगमन का सन्देशा कोयल और आम्र मंजरियों से दिया जाना कि-
“कुहो-कुहो, कहि-कहिं उबे,करि-करि रीते नैन।
हिये और सी ले गई,डरी अब छिके नाम।
दूजे करि डारी खदी, बौरी-बौरी आम।”

सेनापति ने बसंत ऋतु का ऐसा वर्णन किया है की उसने इसे जीवंत बना दिया और वसन्त को राजा के रूप में चतुरंगिणी सेना के साथ आगमन कराया-
“बरन-बरन तरू फूल उपवन-वन
सोई चतुरंग संग दलि लहियुत है।
बंदो जिमि बोलत बिरद वीर कोकिल,
गुंजत मधुप गान गुन गहियुत है।”

महाप्राण सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जन्म वसंत पंचमी के दिन ही हुआ था। और भला वो कैसे पीछे रहते और वसन्त के आगमन पर प्रकृति की सुंदरता पर वो कहते हैं-
“सखि बसंत आया,
भरा हर्ष तन के मन, नवोत्कर्ष छाया।
किसलम-वसना नवल्य लतिका,
मिली मधुर प्रिय उर तरू-पलिका,
मधुपद्य-वृंद बंदी, पिक-स्वर नभ सरसाया।

इस प्रकार से यह कहा जा सकता है कि वसन्त ऋतुओ का राजा है। जिसके आने से मानवीय जीवन की पीड़ा नीरसता अवसाद दूर हो जाती है। जीवन मे आनन्द उत्साह उमंग छा जाता है।

परिचय :अशोक पटेल “आशु”
निवासी : मेघा-धमतरी (छत्तीसगढ़)
सम्प्रति : हिंदी- व्याख्याता
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें …🙏🏻

आपको यह रचना अच्छी लगे तो साझा अवश्य कीजिये और पढते रहे hindirakshak.com राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच से जुड़ने व कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने चलभाष पर प्राप्त करने हेतु राष्ट्रीय  हिन्दी रक्षक मंच की इस लिंक को खोलें और लाइक करें 👉 👉 hindi rakshak manch  👈… राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच का सदस्य बनने हेतु अपने चलभाष पर पहले हमारा चलभाष क्रमांक ९८२७३ ६०३६० सुरक्षित कर लें फिर उस पर अपना नाम और कृपया मुझे जोड़ें लिखकर हमें भेजें…🙏🏻.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *