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प्रकृति का श्रृंगार बसंत

रेखा कापसे “होशंगाबादी”
होशंगाबाद (मध्य प्रदेश)
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रोला छंद

आया सुखद बसंत, प्रीत रम हृदय जगाए।
वसुधा रति श्रृंगार, देख मन अनुपम भाए।।
धर पीताम्बर वस्त्र, भगवती ध्यान लगाओ।
धन वैभव का साज, सौर्य गुरु ग्रह से पाओ।।

बिखरे पतझड़ पात, वात झोंका अलसाये।
रम अनुपम मधुमास, अधर मधु मनन लुभाये।।
अरुणोदय की थाप, रश्मि की तपन प्रवाहित।
नव पल्लव सौगात, कुसुम मकरंद सुवासित।।

रक्तिम टेशू पुष्प, बौर अमुआ पर झूले।
मीठी कोयल कूक, खेत में सरसो फूले।।
प्रेमिल अंत अधीर, मिलन प्रियतम हिय प्यासा।
विरह वेदना पीर, मिटे अब दुखद कुहासा।।

फीकी पड़ती धुंध, निशा का ठौर सिकुड़ता।
रवि किरणों का शौर्य, उत्तरायण तट पड़ता।।
यौवन पाते अन्न, कृषक अंतस हर्षाता।
प्यारा सुखद बसंत, सभी के मन को भाता।।

परिचय :- रेखा कापसे “होशंगाबादी”
निवासी – होशंगाबाद (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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