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पिंजरे के परिंदे

प्रीतम कुमार साहू
लिमतरा, धमतरी (छत्तीसगढ़)
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आकाश में उड़ते परिंदे को तुम
किस गुनाह की सजा देते हो..!
अपने खुशियों के खातिर तुम
पिंजरे में कैद कर लेते हो..!!

अपनों से उन्हें तुम करके दूर
पिंजरे में कैद क्यों करते हो..!
उनका भी अपना एक जीवन है
उन्हें जीने क्यों नहीं देते हो..!!

इंसान हो तुम, इंसान ही रहो
दानव सा काम क्यों करते हो..!
उड़ने की उन्हें भी आजादी दो
हक उनका तुम क्यों छीनते हो..!!

बंद पिंजरे में तड़पते परिंदे,
तरस नहीं तुम खाते हो..!
आकाश में उड़ते परिंदे को तुम
किस गुनाह की सजा देते हो..!!

परिचय :- प्रीतम कुमार साहू (शिक्षक)
निवासी : ग्राम-लिमतरा, जिला-धमतरी (छत्तीसगढ़)
घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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