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हमकदम

मधु टाक
इंदौर मध्य प्रदेश
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अंजान सफर में हमकदम ढूंढ लेती हूँ
सात वचनो में सात जनम ढूंढ लेती हूँ

हर शाम महक उठे तेरे ही तसव्वुर से
इत्र सा ऐसा ही इक सनम ढूंढ लेती हूँ

हज़ारों खंजर सीने में चुभे हुए लेकिन
अपने ही ज़ख्मों में मरहम ढूंढ लेती हूँ

कहींं है बंजर कहीं बने है महल शीशे के
खुदा के लिखे में अपने करम ढूंढ लेती हूँ

ज़िन्दगी की पगडंडी में अन्धेरे बहुत है
हर एक से पार पाने का दम ढूंढ लेती हूँ

न जमी पर ख़ुदा है न ही आसमान पर
पत्थर में तेरे होने का भरम ढूंढ लेती हूँ

तेरे दूर जाने की वजह भी मालुम मुझको
तेरे इशारे पर “मधु” अपने कदम ढूंढ लेती हूँ

परिचय :- मधु टाक
निवासी : इंदौर मध्य प्रदेश
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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