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पप्पू पढ़ लें रे

नितिन राघव
बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश)

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नब्बे के दशक में एक गॉंंव में विवाहित जोडा रहता था। दोनों पति-पत्नी बड़े परेशान थे क्योंकि उनके सात लड़कियॉं थी परन्तु कोई भी लडका नहीं था।वे हर समय पुत्र कामना में लीन रहते थे। उन्हें हमेशा यही डर लगा रहता था कि यदि उनके कोई पुत्र नहीं हुआ तो उनका वंश समाप्त हो जाएगा। कुछ समय पश्चात उनके यहॉं एक पुत्र का जन्म हुआ। जिसका नाम उन्होंने सज्जन सिंह रखा। वह धीरे-धीरे पॉंच साल का हो गया। परन्तु वह बहुत ही उद्डं था। पॉंच साल की उम्र से ही उसने औगार लाना शुरू कर दिया। उसके माता-पिता पूरे दिन उसकी औगारे सुनते। किसी ने कहा, इसे पढ़ने बैठा दो, पढाई और अध्यापकों के प्रभाव से सुधर जाएगा। उसका प्रवेश पहली कक्षा में करा दिया गया। जब सज्जन सिंह पहले दिन स्कूल गया तो पहले ही दिन उसने सारी कक्षा के बच्चों की किताबें फाड़ डाली। जब अध्यापिका को यह बात पता चली तो उसने सज्जन सिंह को बुलाया और उसे समझाया। धीरे-धीरे सज्जन सिंह बडा होता गया और समय के साथ दसवीं कक्षा में आ गया। सब लोग उससे पढ़ने को कहते परन्तु सज्जन सिंह कहॉं पढ़ने वाला था। उसका तो यही काम था कि दिन भर रास्ता चलते लोगों को छेड़ना, वुजुर्गो से मजाक करना, उन्हें परेशान करना और दोस्तों से लडना झगड़ना, कभी कभार स्कूल जाना। इस प्रकार पूरा साल निकल गया और सज्जन सिंह की बोर्ड की परीक्षा आ गई। उससे लोग पढ़ने को कहते तो वह उनसे उल्टा सिधा बोलता और तो और लड़ने मरने को तैयार हों जाता था। अब लोग सज्जन सिंह के बारे में यही कहते कि ऑंखों का अंधा और नाम नयन सुख। अब सज्जन सिंह ने परीक्षा दी परन्तु फेल हो गया। सब लोग उसकी हॅंसी बनाते परन्तु उसे कोई फर्क नहीं पड़ता, वो तो सिर्फ अपने उन्हीं पुराने कामों में मस्त रहता। इस साल तो उसने कुछ और नये काम सिख लिए। जब कोई साधु या महात्मा गांवों में आता तो वह उसे अपने घर ले जाता और खाना खिलाता, फिर उससे बोलता कि जब सारे गॉंवों से धन मांगकर शाम को लौटो तो वापस आना और खाना खाकर ही जाना। बाबा कहता, जरूर बेटा। मैं आऊंगा। बाबा धन मॉंगकर शाम को आता तो उससे बोलता कि लो बाबा थोडी सी लगा लो। खाना खाकर चले जाना। बाबा गुस्से में बोलते गुस्ताख तेरी इतनी हिम्मत, तू हमें शराब पीने को कहता है। वो कहता, अरे नाराज क्यूं होते हो लगा लो। मैं किसी से नहीं बोलूंगा। लगा लो- लगा लो। अब बाबा कहते चल तू कहता है तो ठीक है, जा दरवाजा बंद कर। वो दरवाजा बंद कर देता और फिर बाबा टुन्न। अब गुस्सा दिखाने की बारी थी सज्जन सिंह की वो कहता देखो बाबा जो तुमने सुबह से शाम तक कमाया है उसमें से मुझे आधा हिस्सा दो वरना मैं अभी पूरे मोहल्ले को बुलाकर तुम्हें कुटवा दूंगा। बाबा भी क्या करते टुल जो थे ,चुप-चाप आधा धन निकालकर सज्जन सिंह को दे देते। फिर बाबा कहते खाना, वह बोलता खाना अभी दूं। निकल यहॉं से। इस प्रकार एक बार जो बाबा सज्जन सिंह के घर आ जाता तो कभी फिर लौटकर सज्जन सिंह के घर आना तो दूर ,कभी उस गांव में भी पैर नहीं रखता। उसका धन कमाने का एक जरिया और भी था। जब कभी पूरे गॉंव में किसी के लडका होता या किसी लड़के की शादी होती तो वह किन्नरों को खबर कर बुला लेता था और उनसे कुछ हिस्सा धन ले लेता था। जब कभी इन दोनों कामो में से कोई काम नहीं होता और सज्जन सिंह को धन की जरूरत पड़ती तो वह अपने मां बाप को ही टोपी पहना देता। कभी कहता कि मुझे किताब लानी है, कभी कहता कि मेरे दोस्त के पिताजी पिछले दिनों मर गए हैं और उसकी मां अस्पताल में भर्ती है, उसे कुछ रूपयों की जरूरत है। कुछ दिनों बाद लौटा देगा। इसी प्रकार दोबारा हाईस्कूल की परीक्षा आई परन्तु सज्जन सिंह फिर से फेल हो गया। तीसरे साल सज्जन सिंह ने एक और अनोखा काम शुरू कर दिया। उसने अपने गांव और आस पास के गांवों में खेले जाने वाले जुओ के बारे में पता लगाया। जब कही जुआ खेला जाता तो सज्जन सिंह पुलिस को खबर कर देता और पुलिस आती तो जुआरियों से बोलता। भागो वो देखो पुलिस। वही आस पास छिप जाता। पुलिस को देखकर सभी जुआरी जल्द बाज़ी में सारा धन वहीं छोड़कर दौड लगा देते और पुलिस उनके पीछे दौडती। इतने में ही सज्जन सिंह मौका पाकर धन ऊठा अपने घर पहुंचता। तीसरी बार परीक्षा आ रही थी, उसके मॉं ने एक दिन उसे समझाया बेटा देख हम किसी ना किसी दिन मर जाएंगे। हमारी एक ही आखिरी इच्छा है तू बस अबकी बार हाईस्कूल कर ले तो हम गंगा नहा ले। उसे उनकी बात कुछ समझ में आई और बाहर चला लगा। पूरे दिन यही सोचता रहा कि दसवीं कैसे पास की जाए फिर शाम को उसे एक विचार आया और वह जाकर सो गया। मॉं बाप ने जगाया कि इतनी जल्दी सो गया। परीक्षा में दो महीने शेष है, थोडी पढाई कर ले। वह बोला, मैं अबकी बार पास होकर दिखा दूंगा और पास नहीं हुआ तो ये घर हमेशा के लिए छोड़कर चला जाऊंगा। उसके मॉं बाप भी उसके पास होने की प्रार्थना करने लगे। उन्हें इस बात का डर था कि ये पास नहीं हुआ तो घर छोड़कर ना चला जाए। अब सज्जन सिंह ने पड़ोस के एक लड़के जिसका नाम पप्पू था, से दोस्ती करनी शुरू कर दी। पप्पू कक्षा नौ में था और पढ़ाई में भी अच्छा था। एक सप्ताह में पप्पू सज्जन सिंह का दोस्त बन गया। जब परीक्षा होने में लगभग एक महीना शेष रह गया तो सज्जन सिंह जानबूझकर छत से कूद गया और अपनी एक टॉंग और एक वॉंह तोड ली। भाग्य से उसकी दॉंयी वॉंह ही टूटी। अब क्या था सज्जन सिंह को डाक्टर पर ले जाया गया। डोक्टर ने दो महीने के लिए प्लास्टर चढ़ा दिया। सज्जन सिंह बोला डॉक्टर साहब मेरी परीक्षा शुरू होने वाली है, कृपया आप मेडिकल सर्टिफिकेट बना दीजिए ताकि मैं परीक्षा में लिखवाने के लिए किसी को साथ ले जा सकूं। डोक्टर ने सर्टिफिकेट बना दिया। सज्जन सिंह घर पहुंचे और तुरंत पप्पू को बुलवाया। पप्पू से बोलें अरे मेरे प्यारे दोस्त मेरी एक मदद कर दे, तुझे हमारी दोस्ती की कसम है। वो बोला बता तो सही कैसी मदद। सज्जन सिंह बोला मेरी तो वॉंह टूट गयी है अत: तू मेरी परीक्षा दे दे। अगर तू मेरा सच्चा दोस्त हैं तो मना नहीं करेगा वो बोला ठीक है। मैं दें तो दूंगा पर मुझे दसवीं का कुछ याद तो नहीं है, मुझे तो अपनी कक्षा का ही याद है। सज्जन सिंह ने अपने पिता से कहा कि पिताजी इसे रूपए दे दो ।ये दसवीं की किताबें खरीद लायेगा और आज से रात से मेरे पास ही सोया करेगा। मैं इसे पढा दिया करूंगा। पप्पू किताबें ले आया और सज्जन सिंह के घर सोने लगा। पप्पू कहता कि अरे मुझे कुछ बता दें क्या याद करूं तो सज्जन सिंह कहता कि अभी तू खुद ही याद कर लें मेरे हाथ पैर में दर्द हो रहा है बाद में बता दूंगा। बेचारा पप्पू इसी प्रकार रोज पढ़ता था। परीक्षा शुरू हुई । पप्पू रात भर पढ़ता था और सज्जन सिंह घोड़े बेचकर सोता था। रात को जागकर सज्जन सिंह एक दो बार देखता पप्पू पढ रहा है या सो गया और अगर पप्पू कभी सोया हुआ मिलता तो सज्जन सिंह बड़े रोब मैं कहता, जाग! पप्पू पढ़ लें रे। कल परीक्षा देने जाना है। इस प्रकार तीसरी बार में पप्पू की बदोलत सज्जन सिंह द्वितीय श्रेणी में पास हो गया। अब वह सीना चौड़ा कर चलने लगा। फिर से सज्जन सिंह ने वही लोगों को टोपी पहना शुरू कर दिया। कुछ दिनों बाद सज्जन सिंह के चेहरे पर कील मुहांसे हों गये जिनकी दवाई कराने के लिए वो अपने जनपद में वैद्य के पास गया और वहां देखा की आर्मी की भर्ती चल रही है। वो भी लाइन में लग गया और दौड के मैदान में पहुंच गया। जब दौड शुरू हूई तो सभी लोग तो सीधा भागे परन्तु सज्जन सिंह तो सज्जन सिंह थे वो सिधे न भागकर उस गोल मैदान में तीरछे भागे। जब सब लोग घूमकर आए तो वो सबसे आ आ गये।भाग्यवश किसी ने उनकी इस हरकत पर ध्यान नहीं दिया और उन्होंने प्रथम समूह की दौड़ लगा दी। इसके बाद तुरंत ही डोक्टरी हुई। उसमें भी वह बिल्कुल फिट आया। इस प्रकार वह फौज में सलेक्ट हों गया। शाम को घर पहुंचकर उसने अपने मॉं बाप से कहा कि मैं फौज में भर्ती हो गया हूं। मुझे कुछ रूपये चाहिए ताकि मैं ट्रेनिंग पर जा सकू। उसके पिता को विश्वास नहीं हुआ वो बोलें कही ये फौज में नहीं लगा है। ये तो हमसे रूपये उतारने का कोई नया तरीका है। लेकिन उसकी मॉं ने उसे रूपये दिला ही दीए और वह ट्रेनिंग पर चला गया। जब ट्रेनिंग पूरी कर सज्जन सिंह लौटा तो वह गांवों वालों की नजरों में सज्जन सिंह नहीं रहा बल्कि सज्जन सिंह जी हो गये थे। अब तो सभी लोग सज्जन सिंह जी की उन बिना सर पैर की बातों को भी बड़े ध्यान से सुनते थे और उनका सब लोग सम्मान करते थे। एक दिन छुट्टियों के बीच में ही सज्जन सिंह जी के पास सरहद से बुलावा आया और उन्हें तुरंत आने को कहा गया। वह अगले ही दिन पहली गाड़ी से चलें गये। सरहद पर लडाई चल रही थी और उन्हें भी सरहद पर भेज दिया गया। आतंकवादियो से लड़ते लड़ते सज्जन सिंह और उनके साथी सरहद के पार चले गए। एक-एक करके वीरों की तरह लड़ते हुए उनके सभी साथी शहीद हो गए। सज्जन सिंह जी अकेले रह गए और पेड़ के पीछे से फायरिंग करने लगे। उन्होंने देखा कि अभी लगभग आठ दस आतंकवादी बचें है और अलग अलग जगहों व दूरियों से हमला कर रहे हैं तब उन्होने हाथ में बम लिया, अपनी फायरिंग बंद की और दोनों हाथों को पेट के नीचे दबा उल्टे लेटकर करहाने लगें। आतंकवादियो को लगा कि सभी भारतीय सैनिक मारे जा चुके हैं तो वो धीरे-धीरे समीप आए। उन्होंने देखा कि एक सिपाही उल्टा लेटा कराह रखा है तो उन्होंने सज्जन सिंह को चारों ओर से घेर लिया। तभी सज्जन सिंह ने बम की पिन निकाल विस्फोट कर दिया और सारे आतंकवादी मारें गये और खुद भी देश के लिए शहीद हो गए। दो दिन बाद गांवों में एक ऐसा दुखद और असहनीय समाचार आया जिसे सुनने की हिम्मत किसी में नहीं थी। खबर को सुनते ही सज्जन सिंह जी की मॉं का कलेजा फट गया और पिता के पैरों तले जमीन खिसक गयी। सज्जन सिंह जी के पार्थिव शरीर को देखने के लिए उनके गॉंवों और आस पास के गॉंवों के लोग भी उस रास्ते पर जाकर खड़े हो गए जहॉं से वो भारत मॉं का लाल अपने घर आने वाला था। सभी की ऑंखों में ऑंसू थे और सब लोग उस वीर सपूत के अन्तिम दर्शन‌तथा फूलों से स्वागत करने के लिए हाथों में फूल लिए खड़े थे।जब सज्जन सिंह जी का पार्थिव शरीर भारत के महान तिरंगे में लिपटा हुआ आया तो लोगों ने ऑंसू से भरी आंखों के साथ उन्हें अन्तिम सलाम किया और फूलों की वर्षा कर भावपूर्ण श्रद्धांजलि दी। आज सज्जन सिंह हमेशा लोगों के दिलों पर राज करने वाले वास्तविक सज्जन सिंह बन गए थे और लोगों के दिलों से सिर्फ यही भावना आ रही थी कि यथा नाम तथा गुण। जय हो तुम्हारी सज्जन सिंह जी, अमर रहो तुम सज्जन सिंह जी।

परिचय :- नितिन राघव
जन्म तिथि : ०१/०४/२००१
जन्म स्थान : गाँव-सलगवां, जिला- बुलन्दशहर
पिता : श्री कैलाश राघव
माता : श्रीमती मीना देवी
शिक्षा : बी एस सी (बायो), आई०पी०पीजी० कॉलेज बुलन्दशहर, चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय मेरठ से, कम्प्यूटर ओपरेटर एंड प्रोग्रामिंग असिस्टेंट डिप्लोमा, सागर ट्रेनिंग इन्स्टिट्यूट बुलन्दशहर से
कार्य : अध्यापन और साहित्य लेखन
पता : गाँव- सलगवां, तहसील- अनूपशहर जिला- बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।

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