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समझो द्वारे पर है बसन्त

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया “प्राण”
इन्दौर (मध्य प्रदेश) 

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मद्धिम कोहरे की छटा चीर पूरब से
आते रश्मिरथी के स्वागत में
जब गगनभेद कलरव करती खगवृन्द
पँक्ति के उच्चारण खुद अर्थ बदलने लगते हों,
जब मौन तोड़ कोयलें बताने लगतीं हों,
समझो द्वारे पर है बसन्त।।

उनमुक्त प्रकृति की हरियाली सर्वथा
नवीना कली-कली कदली जैसी उल्लासमई
सुषमा बिखेरती नई नई विटपों से लिपटी
लतिकाएँ आलिंगन करती लगतीं हों,
शाखें शरमाईंं लगतीं हों,
समझो द्वारे पर है बसन्त।।

जब सघन वनों के बीच हवन में
सन्तों की आहुतियों से उठ रहे धुएंँ को
मन्द-मन्द मन्थर गति से ले उड़े पवन
फिर बिखरा दे ताजगीभरी तरुणाई को
कुछ बीज मन्त्र शुचिताएँ छाईं लगतीं हों,
समझो द्वारे पर है बसन्त।।

जब रंग बिरंगे फूलों की मदमाती
झूमा झटकी लख खिलखिला उठे
सौन्दर्य स्वयं हो जाए मनोहारी पी
पल हर दृष्टि सुहानी सृष्टि देख
धड़कन में धड़कन गुंँजा उठे
अमियांँ बौराईं लगतीं हों,
समझो द्वारे पर है बसन्त।।

तन पर मादकता भरा नशा
हर वसन लगे जब कसा-कसा
कल्पनातीत सौन्दर्यलोक की
नई सृष्टि में अलसातीं आनन्द लुटातीं
इठलातीं गलियाँ गदराईं लगतीं हों,
सम्मोहन करतीं लगतीं हों,
समझो द्वारे पर है बसन्त।।

परिवर्तित वातावरण बना पीताभ
पल्लवों की लाशें धरती पर गिरतीं
झूम-झूम रक्तिमाहरित कोपलें
उमग विटपों पर कौतूहल करतीं
कुछ मस्तातीं कुछ सुस्तातीं
उल्लास जगातीं बलखातीं
सकुचातीं आतीं लगतीं हों,
समझो द्वारे पर है बसन्त।।

गुनगुनी धूप शीतल समीर
मन मुदित किन्तु आधा अधीर
निर्मल चरित्र में कुछ विचित्र
लावण्यमयी मिष्ठास प्रबल होती हो
हलचल पर हलचल आकर्षण और
विकर्षण की बेलाएँ सजतीं लगतीं हों,
समझो द्वारे पर है बसन्त।।

परिचय :- गिरेन्द्रसिंह भदौरिया “प्राण”
निवासी : इन्दौर (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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