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राष्ट्र के पुनरुत्थान में साहित्य की भूमिका

सरला मेहता
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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राष्ट्र का तात्पर्य मात्र देश नहीं, देश के साथ उसकी संस्कृति भी है। इसमें वन, पहाड़, नदियाँ व  सामाजिक रीतिरिवाज भी समाविष्ट हैं। राष्ट्र एक प्रवाहमयी इकाई है। साहित्यकार जो अनुभव करता, वही लिखता है। साहित्य, समाज का दर्पण ही है। 
आदिकाल, भक्तिकाल व रीतिकाल तक राज्याश्रय, अध्यात्म व श्रृंगार के संदर्भ में लिखा गया। आधुनिककाल में राष्ट्रप्रेम व समाजसुधार की स्वस्थ भावनाओं द्वारा साहित्य, सामान्यजन से जोड़ा जाने लगा।
गद्यविधा
भारतेंदु युग  इस नवजागरण युग में सदियों से सोए भारत ने अँगड़ाई ली।
राष्ट्रवादी-भाव, जनवादी- विचारधारा, संस्कृति- गौरवगान, स्वराज्य- भावना पर भी लेखनी चलने लगी।
भारदेन्दु अंग्रेजों की फूट नीति में…
“सत्रु सत्रु लड़वाई दूर रहि लखिय तमासा”
“उठो हे भारत, हुआ प्रभात”
नारी दशा पर 
” स्त्रीगण को विद्या देवें “
गरीबों पर
“हे धनियों क्या दीनजनों की नहीं सुनते हो हाहाकार “
बालमुकुंद गुप्त 
 “प्रभु खोयो अपनो देस, खोवत हैं अब बैठ के
भाषा भोजन भेष
महावीर प्रसाद द्विवेदी इस युगप्रवर्तक ने स्वतंत्रता-आंदोलन को  नई दिशा देकर साम्राज्यवाद व रूढ़िवाद से संघर्ष किया। ‘सरस्वती’ पत्रिका के सम्पादन द्वारा ब्रजभाषा से इतर खड़ी बोली का प्रचार किया। वैज्ञानिक तरीके से समस्याओं का विवेचन कर सरल व शुद्ध भाषा प्रचारित की।
रामचन्द्र शुक्ल
“हिंदी साहित्य का इतिहास” ने नए आयाम खोले। वैज्ञानिक आलोचना का नवप्रयोग व  निबंधों में चरित्र, व्यवहार आदि विषयों को छुआ।
प्रेमचन्द ने  आदर्शवाद से यथार्थ के धरातल पर ग्रामीण, दलित, किसान, नारी,  सामाजिक बुराइयों व राष्ट्रीय भावनाओं को गबन, कफ़न, सेवासदन आदि में चित्रित किया। विधवा शिवानी देवी से विवाह रचाया व विमाता चरित्र में निर्मला रची।
पद्यविधा
बंकिमचन्द्र चटर्जी
‘वन्देमातरम’ राष्ट्रगीत एवं *रवींद्रनाथ टैगौर* का ‘जन गण मन ‘ राष्ट्रगान घोषित हुए व मील के पत्थर बन गए।
इकबाल
‘सारे जहाँ से अच्छा,,,’ और *सुब्रमण्यम भारती* ‘यह है भारत देश हमारा’ हर भारतीय गुनगुनाता है
भारतीयता, नारी- स्वाभिमान, धार्मिक- सहिष्णुता, राष्ट्रप्रेम के महानायक मैथलीशरण गुप्त कहते,,,
“वह ह्रदय नहीं पत्थर है जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं”
सुभद्रा कुमारी
विश्वकल्याण, नवयुवक-जागृति सभ्यसमाज, धार्मिक- सद्भाव का पक्ष लिया,
“खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसीवाली रानी थी”
माखनलाल चतुर्वेदी
युगचरण, अमरराष्ट्र आदि द्वारा देशप्रेम, विद्यार्थी- जागरण, बलिदान व साम्राज्यवाद का विरोध किया।
” मुझे तोड़ लेना वनमाली … जिस पथ पर जाए वीर अनेक”
दिनकर
आज़ादी के बाद  साम्राज्यवाद जैसी बुराइयों के लिए समर शेष था।
“सिंहासन खाली करो के जनता आती है “
“तड़प रहा आँखों के आगे भूखा हिंदुस्तान”
“मंदिर व मस्ज़िद को एक तार में बांधो रे”
छायावाद 
नवजागरण– अभिव्यक्ति, एक आदर्श राष्ट्र की छटपटाहट के साथ समस्याओं का समाधान भी। सांस्कृतिक राष्ट्रीय जागरण व स्वाभिमान की उत्पत्ति परिलक्षित होती है। अतीत से ऊर्जा लेकर वर्तमान संघर्षों से जूझना है।
निराला
“जागो फ़िर एक बार” “गीता है, गीता है”
महादेवी वर्मा
“जाग तुझको दूर जाना”
प्रसाद
“बीती विभावरी जाग री”
“हिमाद्रि श्रृंग तुंग से…
स्वतंत्रता पुकारती”
गोपालसिंह नेपाली
“राष्ट्र पले कब तक चंदे से”
प्रदीप
“झाँकी हिंदुस्तान की”
“ए मेरे वतन के लोगों”
आगे भी जारी
बुराइयों को उज़ागर करने की प्रक्रिया…
वाहीद के घर दीप जले तो मंदिर तक उजाला जाए”
हरिओम पँवार 
“कुर्सी भूखी है
 नोटों के थैलों की”
“आज ज़रूरत है
सरदार पटेलों की”
कर्नल वी पी सिंह
“ज़िंदा इंकलाब है
ये सपना कलाम का है”
कुमार विश्वास हौंसला बढ़ाते
“हे नमन उनको…
इस जगत में शौर्य की जीवित कहानी बन गए”  नारी उत्पीड़न बलात्कार व भ्रूण हत्या के ख़िलाफ़ स्वर गूँजे।
कविता तिवारी
“जिन हाथों में कंगन खनके
उन हाथों ने तलवार लिए”
अंकिता सिंह
“कहीं बेटियाँ बेची जाए
कहीं सरहद बेची जाए’ अतः प्रारम्भ से ही साहित्य राष्ट्र के पुनरुत्थान के प्रति सजग रहा है।

परिचय : सरला मेहता
निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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