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धूमिल होंगी सृष्टियां

विजय वर्धन
भागलपुर (बिहार)

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चढ़ी जा रहीं सभी चोटियाँ
घर-घर की मासूम बेटियां

बेटों से कमतर नहीं हैं वे
अब न सेंकती घर में रोटियां

इनमें ऊर्जा झासी की है
और कल्पना सी है शक्तियां

ये सीता हैं ये राधा हैं
ये घर भर की हैं विभूतियाँ

माँ के आंखों की सपना हैं
वृध् पिता की दृढ़ लाठियां

समझो ना कमजोर इन्हे अब
अब समाज की बन्द मुठ्ठियाँ

जितना इन्हे जलाया हमने
उतनी प्रखर हुईं दृष्टियां

इनके बढ़ते कदम न रोको
वर्ना धूमिल होंगी सृष्टियां

परिचय :-  विजय वर्धन
पिता जी : स्व. हरिनंदन प्रसाद
माता जी : स्व. सरोजिनी देवी
निवासी : लहेरी टोला भागलपुर (बिहार)
शिक्षा : एम.एससी.बी.एड.
सम्प्रति : एस. बी. आई. से अवकाश प्राप्त
प्रकाशन : मेरा भारत कहाँ खो गया (कविता संग्रह), विभिन्न पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।

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