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नई भोर

निरुपमा मेहरोत्रा
जानकीपुरम (लखनऊ)
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नई भोर को गीत सुनाने
मेरा मन अब मचल रहा है।

रात अंधेरी घिरी कालिमा,
मन बुन रहा सुनहरे सपने;
कुछ रातों-रात बिखर गए,
कुछ गए दूर गगन में उड़ने।

झड़ गए कुछ पत्ते शाखों से,
नव पल्लव अब झूम रहे हैं;
कुंजों में मदमाते भंवरे,
नव पुष्पों को चूम रहे हैं।

कश्ती चली रात भर जल में,
ठहर गई है प्रिय से मिलकर;
मुदित हुई सरिता की धारा,
अतल सिंधु में स्वयं समाकर।

नया सवेरा लाली रंगकर,
प्रातः कितना दमक रहा है;
कुछ खोया पर कुछ पाने को,
मेरा मन अब तड़प रहा है।

नई भोर को गीत सुनाने,
मेरा मन अब मचल रहा है।

परिचय :- निरुपमा मेहरोत्रा
जन्म तिथि : २६ अगस्त १९५३ (कानपुर)
निवासी : जानकीपुरम लखनऊ
शिक्षा : बी.एस.सी. (इलाहाबाद विश्वविद्यालय)
साहित्यिक यात्रा : कहानी संग्रह ‘उजास की आहट’ सन् २०१८ में प्रकाशित। अभिव्यक्ति साहित्यिक संस्था द्वारा प्रति वर्ष प्रकाशित कहानी संकलनों में कहानियां प्रकाशित। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कहानी, कविता, यात्रा वृत्तांत तथा लेख प्रकाशित।
सम्प्रति : भारतीय स्टेट बैंक से सन् २०१३ में सेवानिवृत्ति के पश्चात स्वतंत्र लेखन एवं सामाजिक संस्था ‘श्री महिला शक्ति मंडल फाउंडेशन लखनऊ’ के माध्यम से सामाजिक सरोकारों से जुड़ाव।
सम्मान : लोपामुद्रा सम्मान- २०१८
घोषणा पत्र : यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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