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तू दिन को रात कर देगा …

महेश बड़सरे राजपूत इंद्र
इंदौर (मध्य प्रदेश)

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तू दिन को रात कर देगा, शबों को आग कर देगा।
जहाँ बरसें हों अंगारें, वहाँ तू बाग कर देगा।।

भरी तुझमे वो मस्ती है, छुपी तुझमें वो शक्ति है।
हुए वीराँ नगर हैं जो, उन्हे आबाद कर देगा।।

इरादों में तड़प देखी, ज़िगर तेरे धड़क देखी।
बुझे कोई जो चिंगारी, तू उनमे ख़्वाब भर देगा।।

तेरि इन सुर्ख आँखों में, हिन्दोस्ताँ ही बसता है।
अपना बन ठगा जिसने , उन्हें क्या माफ़ कर देगा।।

अर्जुन बन तू माधव का, हनुमत बन तू राघव का।
थमे जो ना दुराचारी, तू उनका नाश कर देगा ?

जननी है जन्मभूमि, तारणी है कर्मभूमि।
चुकाने को कर्ज़ इसका, ‘इंद्र’ अपना सर देगा।।

ऐसा तू है परवाना, शमा को जो करे रोशन।
नहीं मरने का भय रखना, तू मरकर भी अमर होगा।।

परिचय :- महेश बड़सरे राजपूत इंद्र
आयु : ४१ बसंत
निवासी :  इन्दौर (मध्य प्रदेश)
विधा : वीररस, देशप्रेम, आध्यात्म, प्रेरक, २५ वर्षों से लेखन
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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