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अंधकार को चीरता सूरज

प्रभात कुमार “प्रभात”
हापुड़ (उत्तर प्रदेश)

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देखो अंधकार को
चीरता सूरज आया।
अंधी रातें, काली रातें
सर्दी के यौवन में
जमती जीवन की राहें।

अंधकार ने जब अपने
यौवन का जाल बिछाया
ठिठुरती सर्दी ने अंधकार को
दीनों-दुखियों बच्चों-बूढ़ों का
कठिन काल बताया,
देखो अंधकार को
चीरता सूरज आया।

मत घबराओ, मत घबराओ
पप्पू-गप्पू,चीनू-लक्की,
अम्मा-बाबा, नाना-नानी,
नहीं रहा सदा समय एक सा
अंधकार अब हुआ है बूढ़ा,
यौवन भी इसका हुआ
ढला ढला सा।
देखो अंधकार को
चीरता सूरज आया।

काली रातें, बीती रातें
भोर हुआ अब
नभ जग थल में
व्योमनाथ आए लिये
रश्मियां संग में
मानो प्राणी मात्र को
जीवन दान मिला रश्मियों से।
सात घोड़ों के रथ में
होकर सवार
देखो अंधकार को
चीरता सूरज आया।

नई आशाओं का
अंकुर जन्मा,
समय भी फिर से
अंगड़ाई लेकर नए
कलेवर में आया
तुमको, मुझको, हमको,
सबको जगने का संदेशा लाया।
नई उमंगों के संग
जीवन जीने का
संदेशा लाया।
देखो अंधकार को
चीरता सूरज आया।

परिचय :-  प्रभात कुमार “प्रभात”
निवासी : हापुड़, (उत्तर प्रदेश) भारत
शिक्षा : एम.काम., एम.ए. राजनीति शास्त्र बी.एड.
सम्प्रति : वाणिज्य प्रवक्ता टैगोर शिक्षा सदन इंटर कालेज हापुड़
विशेष रुचि : कविता, गीत व लघुकथा (सृजन) लेखन, समय-समय पर समाचारपत्र एवं पत्रिकाओं में रचनाओं का निरंतर प्रकाशन।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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