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तिरस्कृत मन

जगदीशचंद्र बृद्धकोटी
जनपद अल्मोड़ा (उत्तराखंड)
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स्तब्ध मन हो रहा है जब
क्रोध बांटा जा रहा है।
अनगिनत अवहेलनाओं
से पुकारा जा रहा है।

खुद की कुंठा को छिपाने
मुझको रोका जा रहा है।
कटु वचन से शब्दभेदी
बाण मारा जा रहा है।

मगर भ्रम उत्पन्न करके
सत्य छुपता क्या कभी?
अन्ध बन स्वीकारने से
द्वन्द छिड़ता क्या कभी?

मूक बन खुद की जिसे
अवहेलना स्वीकार है।
द्वन्द क्या छेड़ेगा वह कायर
उसे धिक्कार है।

ये लड़ाई हो गई है
अब मेरे अधिकार की।
रोक ना पाएँगी मुझको
वेड़ियाँ संसार की।

प्रत्येक जीवन के सफर का
यह अनोखा पर्व है।
जिसको अपनी स्वाभिमानी
पर सदा ही गर्व है।
निन्दकों की बात का
उसपर न पड़ता फर्क है।
उसके लिए द्युलोक क्या
यह धरा ही स्वर्ग है।

परिचय :- जगदीशचंद्र बृद्धकोटी
निवासी : जनपद अल्मोड़ा (उत्तराखंड)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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