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स्त्री हूं मैं

रुचिता नीमा
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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क्यों स्वतन्त्र होकर भी परेशान हूँ मैं
अपनी हस्ती से अनजान हूँ मैं

कहने को तो हूँ सब ऐशो आराम में,
लेकिन फिर भी सबकी मर्जी की ग़ुलाम हूँ मैं।।

न कभी मन की चाह व्यक्त कर पाई मैं,
और खुद को भी तो न कभी समझ पाई मैं

हमेशा झुकती रही सबकी खुशियों की खातिर
लेकिन कभी अपनी ही खुशी नही समझ पाई मैं

हमेशा बस बन एक गुड़िया सी इठलाई मैं
भरा है फौलाद मुझमें भी,
दुनिया को कहाँ समझा पाई मैं??

हाँ नारी हु, झुकना मेरा स्वभाव है
लेकिन अकड़ना मुझे भी आता है,
अगर बात हो स्वाभिमान की तो,
खुद को साबित करना भी भाता है।।

कमजोर नहीं, खुद्दार हुँ मैं
इस धरा पर जीवन की सूत्रधार हु मैं।।
आदर मान सम्मान की हकदार हूं मैं,
हाँ इस दुनिया मे बराबर की हिस्सेदार हु मैं।।
स्त्री हूँ मैं, हाँ स्त्री हूँ मैं….

परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस.सी., मइक्रोबॉयोलॉजी में बी.एस.सी. व इग्नू से बी.एड. किया है आप इंदौर निवासी हैं।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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