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राम नाम की मधुशाला (भाग- २)

प्रेम नारायण मेहरोत्रा
जानकीपुरम (लखनऊ)
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तुम अनन्य सेवक हो राम के,
स्वांस स्वांस तेरी माला।
तुलसी से लिखवा कर महिमा,
“तुलसीदास” बना डाला।
पीनेवाला ही तो नाम की,
महिमा बतला सकता है।
तुम बतलाते जाओ महिमा,
लिख दूँ अमृत मधुशाला।

नाम नशे में रहते हो तुम,
क्यों बस यही बखान करो।
सबके अन्तर करो प्रेरणा,
राम नाम का पान करो।
हनुमत इस अमृत मदिरा का,
पकड़ा दो हर कर प्याला।
हर घर मे हो साकी प्रभु का,
वसुंधरा हो मधुशाला।

मदिरालय की मदिरा चढ़ती,
तो विवेक हर लेती है।
राम नाम की मदिरा सबको,
भक्ति का फल देती है।
लग जाता पूरी श्रद्धा से,
जो होकर के मतवाला।
उसकी दृष्टि झूमा देती है,
वो बन जाता मधुशाला।

उस मदिरा का नशा चढ़े तो,
नष्ट सभी कुछ होता है।
नाम नशा जितना चढ़ता,
मन उतना पावन होता है।
नाम नशे में डूबके मीरा ने,
विष अमृत कर डाला।
नाम नशा सबपर चढ़ जाए,
तो हो हर घर मधुशाला।

परिचय :- प्रेम नारायण मेहरोत्रा
निवास : जानकीपुरम (लखनऊ)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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