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चौकीदारी छोड़ तू

प्रमोद गुप्त
जहांगीराबाद (उत्तर प्रदेश)
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सड़कों पर गुंडई दिखा वह खास हो गए,
बदमाशी की परीक्षा में अब पास हो गए ।

ये राजा क्यो किताब से बाहर नहीं चलता-
जब, टेड़ी अंगुलियों के सभी दास हो गए ।

सब हो गए हैं स्वार्थी, इस जंगल के पेड़ ये-
झूंठे शब्द ही इनका अब विस्वास हो गए ।

इस घर का होगा क्या ये भगवान ही जाने-
सारे ही नियम यहाँ के, बकवास हो गए ।

विकास के पहाड़ पर हम चढ़ते चले गए-
पर ये हृदय क्यों हमारे बदहवास हो गए ।

डंडा की जगह गधों को जब पान दोगे तुम-
तो आरोप तो लगेंगे ही क्यों उदास हो गए ।

ये चौकीदारी छोड़ तू, ग्वाले का काम कर-
ये विकसित-खंडहर, ढोरों का वास हो गए ।

परिचय :- प्रमोद गुप्त
निवासी : जहांगीराबाद, बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश)
प्रकाशन : नवम्बर १९८७ में प्रथम बार हिन्दी साहित्य की सर्वश्रेठ मासिक पत्रिका-“कादम्बिनी” में चार कविताएं- संक्षिप्त परिचय सहित प्रकाशित हुईं, उसके बाद -वीर अर्जुन, राष्ट्रीय सहारा, दैनिक जागरण, युग धर्म, विश्व मानव, स्पूतनिक, मनस्वी वाणी, राष्ट्रीय पहल, राष्ट्रीय नवाचार, कुबेर टाइम्स, मोनो एक्सप्रेस, अमृत महिमा, नव किरण, जर्जर कश्ती, अनुशीलन, मानव निर्माण, शाह टाइम्स, बुलन्द संदेश, बरन दूत, मुरादाबाद उजाला, न्यूज ऑफ जनरेशन एक्स, किसोली टाइम्स, दीपक टाइम्स, सिसकता मानव, आदि देश के अनेक स्तरीय समाचार पत्र व पत्रिकाओं एवं साझा संकलनों में- निजी/मौलिक रचनाएँ आदि निरन्तर प्रकाशित होती चली रही हैं ।
अन्य : कवि, लेखक, पूर्व संपादक, विभिन्न कवि सम्मेलनों में कविता पाठ एवं अनेक कवि सम्मेलनों का आयोजन, “प्रमोद स्वर” पाक्षिक समाचार पत्र का लगभग निरंतर २२ वर्ष सफल सम्पादन व प्रकाशन, कई स्तरीय समाचार-पत्रों के संवाददाता-प्रतिनिधि के रूप में समय-समय पर कार्य किया, वर्तमान में- जिला संयोजक-संस्कार भारती।
घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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