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जज्बा ये जोश बाक़ी है।

अशोक पटेल “आशु”
धमतरी (छत्तीसगढ़)
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अभी भी हमारे दिलों में
जज्बा ये जोश बाक़ी है।
मेरे देश को आंच न आये
अभी होशो-हवास बाकी है।

अपने वतन के लिए
ये जिस्मो-जान बाकी है।
कुछ काम आ सके हम
वक्त पर ये जज्बात बाकी है

मिट्टी का रखो ध्यान
इस मिट्टी का एहसान बाकी है।
मिट्टी के बिना हम कुछ नही
इसका मोल चुकाना बाकी है।

वतन के राह जो फना हुए
उनके लिए जीना बाकी है।
उनकी शहादत जाया न हो
उनके लिए इबादत बाकी है।

उनकी शहादत को सलाम है
अभी हमारी खिदमत बाकी है।
उन्होंने जो समर्पण किया है
उसका कीमत चुकाना बाकी है।

ओ आसमा से जमी को देखते होंगे
अभी भी हम में कुछ कमी बाकी है।
जीते जी कुछ अच्छा करलो यारों
अभी भी वक्त और जज्बा बाकी है।

परिचय :अशोक पटेल “आशु”
निवासी : मेघा-धमतरी (छत्तीसगढ़)
सम्प्रति : हिंदी- व्याख्याता
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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