रजनी गुप्ता ‘पूनम चंद्रिका’
लखनऊ
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रोता है घर का हर कोना, ध्वनि मद्धम है धड़कन की।
खाली पिंजड़ा छोड़ गई है, सोन चिरैया उपवन की।।कोमल-कोमल उन हाथों में, स्वप्न सुनहरे सजते थे।
नन्हें- नन्हें पग में घुँघरू, कितने सुंदर लगते थे।
छम छम छम छम जब चलती थी, अतुलित शोभा लटकन की।
खाली पिंजड़ा……मेरी बेटी माँ जब कहती, टूटी-फूटी भाषा में।
कथा कहानी लोरी सुनती, गढ़ती निज अभिलाषा में।
खेल रसोई का जब खेले, खटपट करती बरतन की।
खाली पिंजड़ा……लाडो मेरी बड़ी दुलारी, मेरे मन की रानी है।
आज विदाई की वेला में, इन आँखों में पानी है।
सदा नहाओ दूधों-पूतों, वर्षा होए अति धन की।
खाली पिंजड़ा……खड़ा किनारे बाबुल अपनी, आँखें कहीं भिगोता है।
और कहीं भीगी पलकों से, भाई मुखड़ा धोता है।
सखी सहेली बहने सारी, खनखन करतीं कंगन की।
खाली पिंजड़ा……गले लगाकर दादा रोएँ, दादी बोलें पोती से।
सुखी सदा रहना तुम बेटी, माँग सजाना मोती से।
दूर रहे संसार तुम्हारा, किसी तरह की अनबन से।
खाली पिंजड़ा…..रोता है घर का….
खाली पिंजड़ा….
परिचय : रजनी गुप्ता ‘पूनम चंद्रिका’
उपनाम :- ‘चंद्रिका’
पिता :- श्री रामचंद्र गुप्ता
माता – श्रीमती रामदुलारी गुप्ता
पति :- श्री संजय गुप्ता
जन्मतिथि व निवास स्थान :- १६ जुलाई १९६७, तहज़ीब व नवाबों का शहर लखनऊ की सरज़मीं
शिक्षा :- एम.ए.- (राजनीति शास्त्र) बीएड
व्यवसाय :- गृहणी
प्रकाशन :- राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर म.प्र. के hindirakshak.com पर रचना प्रकाशन के साथ ही कतिपय पत्रिकाओं में कुछ रचनाओं का प्रकाशन हुआ है
सम्मान :- समूहों द्वारा विजेता घोषित किया जाता रहा है। दो बार नागरिक अभिनंदन पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। मंचों पर काव्य-पाठ व लघुकथा का पाठन करती रहती हूँ। सांस्कृतिक एवं सामाजिक योगदान हेतु सम्मान-पत्र प्रदान किया गया है। विद्यालय के समय भी अनेक पुरस्कार मिले हैं।
रचना की विधा :- अधिकतर दोहा सृजन, छंदमुक्त कविताएँ, मुक्तक, दोहा, गजल, छंद, हाइकु दोहा, गीत, गीतिका, लघुकथा, संस्मरण आदि….
घोषणा पत्र :- मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।
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