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दिल मेरा ही छला गया

शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’
तिनसुकिया (असम)
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क्यूँ शब्दों के जादूगर से,
दिल मेरा ही छला गया।
उमड़ घुमड़ बरसाया पानी,
बादल था वो चला गया।।

तड़प रही थी एक बूंद को,
सागर चलकर आया था,
प्यासे मन से ये मत पूछो,
कितना तुमको भाया था।
सीने में इक आग धधकती,
वो मेरे क्यूँ जला गया।
उमड़ घुमड़ बरसाया पानी,
बादल था वो चला गया।

तार जुड़े फिर टूट गये भी,
गीत अधूरे मेरे हैं,
साँसों की सरगम में मेरी,
सुर सारे ही तेरे हैं।
बिन रदीफ़ के भला काफ़िया,
कैसे यूँ वो मिला गया।
उमड़ घुमड़ बरसाया पानी,
बादल था वो चला गया।

अक्सर ऐसा होते देखा,
जो जाते कब आते हैं,
इंतजार में दिन कट जाते,
आँख बरसती रातें हैं।
मीठी मीठी बातें करके,
घूँट जहर का पिला गया
उमड़ घुमड़ बरसाया पानी,
बादल था वो चला गया।

परिचय :- शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’ (विद्यावाचस्पति)
जन्मदिन एवं जन्मस्थान : २६ नवम्बर १९६९, सुजानगढ़ (राजस्थान)
निवासी : तिनसुकिया (असम)
प्रकाशित पुस्तकें : एकल ५ कविता संग्रह- “दर्पण”, “साहित्य मेध”, “मन की बात”, “काव्य शुचिता”, तथा “काव्य मेध” अन्य रचनाएँ देश की सम्मानित वेब पत्रिकाओं में नियमित रूप से प्रकाशित होती रहती हैं। हिंदी साहित्य से जुड़े विभिन्न ग्रूप और संस्थानों से कई अलंकरण और प्रसस्ति पत्र नियमित प्राप्त होते रहते हैं। हिंदी साहित्य की पारंपरिक छंदों में विशेष रुचि और मात्रिक एवं वर्णिक लगभग सभी प्रचलित छंदों में काव्य सृजन में सतत संलग्न।)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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