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अंतर्मन का रावण जलाओ

धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू
बालोद (छत्तीसगढ़)
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घर-घर में रावण बन बैठा, तो राम कहाँ से आएगा,
कुसंस्कारी दिशा गमन करें, तो राम कहाँ से पाएगा।

मनुज चरित ही धर्म-कर्महीन है, तो राम कहाँ लाएगा…
कामी, क्रोधी, लोभी, हिंसा, स्वार्थी असूरी गुणी समाया है,
अहंकारी, चोरी, व्यभिचारी को दैत्य कारज बताया है।

छोड़ो, त्यागो, दफन करो ये सब, तब तो राम मिल पाएगा..

सोकर सपना देखोगे तो सोना कहाँ से मिल पाता है,
जाग कर अपने को देखो तो सोना हीरा बन जाता है।
घट-घट में जो राम बसा है वहीं तो सबको जगाएगा…

दशानन दसगुणी रहा इसलिए वेदों का ज्ञान पाया है,
रावण ब्राह्मण कुल लंकेश अधिपति वह कहलाया है।
विद्वान होकर भी पाखंडी बना तो राम कहाँ से आएगा ..

ब्राह्मण रूप धर छल कपटकर परनारी सीता को लाये हैं,
मंदोदरी सखी सहेली मिल, पति रावण को समझाये हैं।
पर नारी हरण हिंसाकारी है तब आदर्श कहाँ से आएगा ..

अंतर्मन का तमस जलाओ तो जीवन धन्य हो जाता है,
दशरथ नंदन आदर्श ही निर्मल छवि मणि बन जाता है।
सारे अवगुणों को दहन करें तो तन अंतरपट खुल जाएगा..

असत्य पर सत्य की जीत होना जीवन की अच्छाई हैं,
अधर्म से विमुख होकर धर्म पथ पर चलना ही भलाई हैं।
दया, क्षमा, संतोष, धैर्य, शील, आत्म-चिंतन से राम मिल जाएगा…

काम, क्रोध, लोभ, मोह, दंभ, पाखंड, चोरी, हिंसा यही तो रावण है,
मिथ्या, आडंबर, अभिमान, अहंकार मनोविकार के कारण है।
ऐसे रावण को मार चलो सब कभी जिंदा होकर न पाएगा..
कुसंगत त्यागकर श्रवण के साथ सत्संग करो राम मिल जाएगा…

परिचय :- धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू
निवासी : भानपुरी, वि.खं. – गुरूर, पोस्ट- धनेली, जिला- बालोद छत्तीसगढ़
कार्यक्षेत्र : शिक्षक
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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