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शाला परिदृष्य

रश्मि श्रीवास्तव “सुकून”
पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़)
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निर्जीव पड़ी इस शाला में,
फिर जीवन का संचार हुआ।
बच्चों की कोलाहल से फिर,
शाला प्रांगण गुलजार हुआ।।
मैदान खेल के थे वही,
वही मीठी गोली का बाजार हुआ।
स्कूल में आकर पढ़ने का,
फिर से सपना साकार हुआ।।
एक अंतराल के बाद मिले,
आपस में खूब प्यार हुआ।
फिर शुरु हुई कट्टी बट्टी,
फिर जमकर के तकरार हुआ।।
अच्छे खासे हम पढ़ते थे,
फिर कोरोना का संचार हुआ।
स्कूल खुलते फिर बंद होते,
एक बार नहीं कई बार हुआ।।
मुँह पर थी पट्टी लेकिन,
आंखों से ही प्रतिकार हुआ।
सही गलत की थी पहचान,
प्रभावित बच्चों का व्यवहार हुआ।।
खुली टिफ़िन तो एक रोटी का,
हिस्सा फिर से चार हुआ।
छीना-झपटी पकड़म-पकड़ी,
जो जीता वो सरदार हुआ।।
थी मोबाइल पर पाबंदी,
इस सूचना का प्रसार हुआ।
ऑनलाइन की इस अवधि में,
मोबाइल ही तारणहार हुआ।।
कापी पुस्तक और गणवेशॉ का,
फिर से शुरू व्यापार हुआ।
पहले से जेबे ढीली थी,
उस पर फिर एक प्रहार हुआ।।
पर बात भविष्य की थी बच्चों की,
घर पर यह सोंच विचार हुआ।
अपनी जरुरत में कटौती की,
तब बच्चों का बेड़ापार हुआ।।

परिचय : रश्मि श्रीवास्तव “सुकून”
निवासी : मुक्तनगर, पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़)
घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करती हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है।


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