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लक्ष्मी उवाच

सुधा गोयल
बुलंद शहर (उत्तर प्रदेश)
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                            “सुनो विष्णु, तुम्हारे पांव दबाते सदियां निकल गई। मेरे हाथ दुखने लगे हैं। आखिर कोई तो सीमा होगी। कब तक दबाऊंगी? मैं तुम्हारे पांव के आगे की दुनिया देख ही नहीं पाती।”
भगवान विष्णु चौंक कर शेषनाग की शैय्या से एकदम उछल कर बैठ गये। उन्होंने लक्ष्मी को छूकर देखा। उनकी बातों से बगावत की बू आ रही थी। विस्मय से पूछा- “क्या हुआ भगवती? आज मुझे नाम लेकर पुकार रही हो। अभी तक तो प्राणेश्वर या जगदीश्वर कहकर बुलातीं थीं। आज सीधे नाम पर आ गई। और यह क्या कह रही हो कि चरण नहीं दबाओगी। क्यों? पृथ्वीलोक का चक्कर लगा कर आ रही हो?”
“मुझसे क्यों पूछते हो विष्णु? तुम तो तीनों लोकों के अन्तर्यामी और स्वामी हो। मेरे मन में हाहाकार मचा है। क्या तुम मेरा मन नहीं पढ़ सकते? आखिर कब तक सोते रहोगे। बहुत सो लिए, अब नहीं सोने दूंगी। स्वामी, प्राणेश्वर पुकारने से दासत्व झलकता है। आजकल की पढ़ी-लिखी औरतें मुझे गंवार और अनपढ़ समझती हैं। आखिर मैं कब तक दासत्व झेलती रहूंगी। आपको मेरे मान सम्मान का जरा भी ख्याल नहीं है। आज की औरतें पति को नाम से पुकारती हैं। आपको कोई एतराज़ है।”
“कहां सोता हूं देवि भगवती? तुम्हारा आरोप निराधार है। मैं तो भक्तों के बारे में ही चिंतन करता रहता हूं किसकी क्या जरुरत है, कब कैसे पूरी करनी है- इस जुगत में लगा रहता हूं। तुम पत्नी होकर इतना भी नहीं समझतीं। “मनुहार की मुद्रा में आ गये विष्णु।
सब समझती हूं। तुम अपने भक्तों के बारे में सोचते हो। मेरे भक्तों का क्या? कभी सोचा है दुनिया कहां से कहां पहुंच गयी? और हम क्षीर सागर के पार ही नहीं निकले। मेरी भक्तिनें मुझसे पूछती हैं- “मां, तुम कब तक विष्णु के पैर दबा-दबाकर उन्हें आलसी और निकम्मा बनाए रखोगी। अपना नहीं तो हमारा ध्यान रखो। हमारे मर्द हमें हमेशा चरणदासी बनाए रखना चाहते हैं। मना करने पर आपका उदाहरण देते हैं। आपकी फोटो दिखाते हैं। अब आप ही बताओ इक्कीसवीं सदी की कम्प्यूटर पर काम करने वाली, इंटरनेट सर्फ करने वाली, सरकारी दफ्तरों में जी.एम. तथा देश की राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री जिनके नीचे करोड़ों मर्द काम करते हैं वह औरत कैसे चरणदासी बन सकती है।”
“लेकिन देवी, पृथ्वी और देवलोक में बहुत अंतर है। यह अंतर कैसे मिट सकता है?”
“आप नहीं समझेंगे या समझकर भी अनजान बने रहेंगे। आदमी ने तरक्की करके यह अंतर पाट दिया है। आप जो सोचते हो आदमी वह कर लेता है। तुम्हारी सोच से अधिक तेज कम्प्यूटर चलता है। हजारों मील दूर बैठा व्यक्ति एक दूसरे की शक्ल देखकर चैटिंग कर सकता है।पलक झपकते ही अपना संदेश भेज सकता है। सात समंदर पार बात कर सकता है। सारी दुनिया की दूरी एक बटन दबाने से मिट जाती है।अब वह चांद पर बसने जा रहा है। दूसरे उपग्रह भी उसकी मुट्ठी में हैं। वह तो तुम्हारे इस रहस्य की खोज में भी लगा है कि पृथ्वी और मानव का निर्माण कैसे हुआ?”
लक्ष्मी के मुंह से ऐसी बातें सुनकर हंस पड़े विष्णु। “तुम कितनी भोली हो प्रिया। आदमी की चालाकी भी नहीं समझती।”
“पता नहीं क्यों आप नहीं समझते या समझना नहीं चाहते। आपने पृथ्वी लोक बसाया। आदमी, जानवर, पेड़-पौधे, पशु-पक्षी बनाए और छोड़ दिए। आदमी जंगली से समझदार और संस्कारी बना। विष्णु सुनो, अब मैं तुम्हारी चिकनी चुपड़ी बातों में नहीं आने वाली। मैं भी प्रेस कांफ्रेंस बुलाएंगी और अपनी समस्याएं उसके सामने रखूंगी”.
“तुम्हें अपनी समस्याएं सार्वजानिक करने की क्या आवश्यकता है? मैं हूं न। बोलो तुम्हे क्या चाहिए?”
मैं इस क्षीरसागर से बाहर निकल कर बाहर की दुनिया देखना चाहती हूं। इक्कीसवीं सदी की औरत से मिलना चाहती हूं। वैसी ही बनना चाहती हूं। अब कोई कन्या पूजन करते समय यह नहीं कहती कि मां ऐसा वर दो, वह कहती हैं मां मुझे वर की नहीं कैरियर की चिंता है।कैरियर बन गया तो वर अपने आप मिल जाएगा। नहीं मिला तो क्या हुआ लिव इन रिलेशनशिप तो है ही। फ़ालतू का झंझट खत्म। सात जन्मों का उबाऊ बासी बन्धन किसने देखा। जब तक मन मिले साथ साथ रहो। ना मिले अपने अपने रास्ते चले जाओ।”
लक्ष्मी जी की बातें सुनकर भगवान विष्णु सचमुच चिंतित हो उठे। लक्ष्मी पांव दबाते हुए इतनी मुखर और समझदार कैसे हो गयी। जो इस वृद्धावस्था में बगावत पर उतर आई है। यदि समस्त देव पत्नियों को भड़का दिया तो स्वर्ग लोक के निवासियों के साथ अपनी क्या दशा होगी। सारी सत्ता हाथ से निकल जाएगी। यदि लक्ष्मी ही मुझे परमेश्वर की जगह विष्णु कहकर बुलाएंगी तो कौन भक्त श्रद्धा से झुकेगा। मुझे लक्ष्मी को रोकना ही होगा, परन्तु कैसे? विष्णु भगवान चिंतन करने लगे। उन्हें सोच में डूबा छोड़ लक्ष्मी अन्य देव पत्नियों के पास चल दीं।
तभी भगवान विष्णु नारायण-नारायण का उदघोष सुनकर प्रफुल्लित हो गये। सोचा-नारद सही समय पर आए हैं। तीनों लोकों की खबर रखते हैं। अब ये ही कोई रास्ता सुझाएंगे।
तब तक नारद उनके पास पंहुच कर दण्डवत् खड़े हो गए।
“यहां समीप बैठो नारद। तुम्हें मंत्रणा करनी है। “भगवान ने उन्हें पुचकारा।
“आदेश करें प्रभु, सेवक आपका आज्ञाकारी है।”
भगवान ने कुछ संकोच के साथ नारद को अपने और लक्ष्मी के बीच हुए वार्तालाप की जानकारी दी और पूछा- “देवी लक्ष्मी को कैसे समझाया जाए।”
नारायण-नारायण कहते हुए नारदजी ने करताल बजाईं और बोले- “प्रभु, अब सभी मर्दों का यही हाल है। पृथ्वी लोक की दशा बड़ी खराब है। औरतों के ज्ञान चक्षु खुल गये हैं। अब वे मर्दों की चिकनी चुपड़ी बातों में नहीं आतीं। उन्हें जो ठीक लगता है वही करती हैं। अब आप देवी भगवती को रोक नहीं पाएंगे।
मैं अब चलता हूं। यदि देवी भगवती ने आपसे इस विषय में वार्तालाप करते सुन लिया तो अपनी खैर नहीं। मैं तो वैसे ही ब्रह्मचारी हूं। औरतों के पचड़ों में नहीं पड़ता।”
नारद करताल बजाते हुए चले गए और भगवान चिंतन करने लगे। नाग की शय्या उन्हें चुभने लगी। वे बार-बार करवटें बदलने लगे। उन्हें नींद भी नहीं आ रही थी। वे शांति से चिंतन भी नहीं कर पा रहे थे क्योंकि देवी लक्ष्मी पांव नहीं दबा रहीं थीं।

परिचय :– सुधा गोयल
निवासी : बुलंद शहर (उत्तर प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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