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बेटी की भावना

संध्या नेमा
बालाघाट (मध्य प्रदेश)
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थोड़ा सा सच कह दूं क्या?
ना लगे बुरा तो
सच्ची बात कह दूं क्या?

बेटा पाने का अरमान
जगाए दिल मे आपने
बेटा पाने की आश में
बेटी पाए आपने

क्यों दुनिया के सामने
झूठी मुस्कान अपनाया
दिल में बेटे की जगह
बनाया बेटी आपने जब पाया

ऐसा क्या है खुश हो
जाते हो बेटा पाकर
बेटी होने पर भी
बेटा की आश लगाते हो

क्यों दुनिया को बताते हो
बेटी से हम खुश हैं
बेटी आने के बाद भी
जब बेटे की चाह रखते है

सोच ही लेते हो जब
पराई है पराए घर जाना है
फिर क्यों अपनेपन के
झूठे सपने दिखाते हो

जब अपने घर के लिए
बहू लाना चाहते हो।
फिर क्यों बेटी को घर
खिलाने में कतराते हो

क्यो ऐसी रीत बनाई है
जब समता का पाठ पढ़ाना है
घर में ही बेटी पराई होती है,
जग को तो यही बताना है

फिर भी न जाने क्यों ये
बेटी दिल की यू नाजुक होती है
रहते-रहते अपनो के साथ
पराए भी अपना लेती है

परिचय : संध्या नेमा
निवासी : बालाघाट (मध्य प्रदेश)
घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करती हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है।


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