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जीवन के महासागर में

दिनेश कुमार किनकर
पांढुर्ना, छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश)
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जीवन के महासागर में,
संघर्षों की नित लहरे,
जो डरे महज थपेड़ो से,
वे न कभी उतरे गहरे….

जिन्हे अपने भुजबल पर
सदा अटूट रहा विस्वास,
सुख मोतियों की आस में,
करते गए जो नित प्रयास,
जीवन के परमानंद को,
सदा उन्होंने ही चखा,
कंटको के भय से
जो न कभी पथ पर ठहरे….
जो डरे महज थपेड़ो से,
वे न कभी उतरे गहरे….

दुखो में ही होती निहित,
सुखों की सच्ची आशा,
मोती भी मिले उन्हें ही,
रही जिन्हें सच्ची प्रत्याशा,
जिन्होंने सदा ही भार सहा,
वे ही हीरक बनकर दमके,
मिली मंज़िल उन्हें ही सदा,
तोड़े जिन्होंने हर पहरे,
जो डरे महज थपेड़ो से,
वे न कभी उतरे गहरे….

परिचय –  दिनेश कुमार किनकर
निवासी : पांढुर्ना, जिला-छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र :  मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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