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गांव की मिट्टी

डॉ. भगवान सहाय मीना
जयपुर, (राजस्थान)
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गांव की मिट्टी पावन चंदन लगती है।
लहलहाती फसलें शत्-शत् वंदन करती है।
पीपल की शीतल छांव तले,
झीने घूंघट में पनिहारी स्वागत करती है।
रुनझुन घुंघरू बजते पग बैलों की जोड़ी,
नाचे मोर पपिया कोयल गीत सुनाती है।
खेतों में निपजे हीरे मोती,
मीठी-मीठी खुशबू रोटी बाजरे की आती है।
सूरजमुखी शर्मिली, नवयौवना सरसों,
चंचल गैंहू की बाली झुक झुक नर्तन करती है।
बालू के टीले नदी किनारे अन्नदाता की जननी,
मेहनत कश गांव की मिट्टी अभिनंदन करती है।
नन्हे गोपालक संग धेनु चलती खेतों में,
कृषक बाला गुड्डियों का ब्याह रचाती है।
घनीभूत भ्रमर का गुंजन खग कल्लोल करते,
गांव की मिट्टी सब का आलिंगन कर लेती है।
अनजान पथिक भी पाता यहां ठिकाना,
ममता का सागर उमड़े प्रेम की गंगा बहती है।

परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार)
निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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