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भाग्य की कसौटी

सरला मेहता
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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(१४ सितम्बर २०२१ को हिंदी दिवस पर राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच द्वारा आयोजित अखिल भारतीय लघुकथा लेखन प्रतियोगिता (विषय मुक्त) में तृतीय स्थान प्राप्त लघुकथा।)

शब्द संख्या- २०५

ब्याह की विदाई में नाइन पायल पाकर चहकने लगी,
“अम्मा ! बहु आपकी चाँद का टुकड़ा है। भैया के साथ जोड़ी भी खूब जमती है। बुलाओ ना, ज़रा नज़र उतार दूँ।”
यशोदा हँसती है, “तेरे मुँह में घी शक्कर। चल, दूल्हा-दुल्हन दोनों को एक साथ भेजती हूँ।”
वन्दनवार अभी सूखे भी नहीं हैं। नई नवेली दुल्हन अपने प्रियतम के साथ मगन है।
“पूर्णा ! बताओ ना, अपनी मनपसंद जगह। अच्छा ठीक है, मैं ही तय करता हूँ ।” कहते हुए पार्थ अपनी प्रिया को आग़ोश में ले निहारता है। और चल देता है टिकिट बुक कराने।
तूफान कभी कहकर आता है भला। सड़क हादसे से पूर्णा के मेहंदी भरे हाथ मंगलसूत्र उतारने को मजबूर हो गए। दिलासा बँधाने वाले हज़ारों हैं किंतु उलाहना देने वाले भी कम नहीं।
पड़ोसन चाची कहने से कैसे चूकती, “बहु के पैर शुभ नहीं, आते ही पति को खा गई।”
बेटे के गम में डूबी यशोदा, बहु को जैसे-तैसे सम्भाल रही है। फ़िर भी स्वयं को रोक नहीं पाई, “आपकी देवरानी शादी के दो माह बाद ही स्वर्ग सिधार गई थी। क्या कहूँ आपके देवर के भाग्य को? ईश्वर ने चाहा तो मेरा बेटा, बहु की गोद में पुनः आ जाएगा। मेरी पूर्णा अभागिन नहीं है।”

परिचय : सरला मेहता
निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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