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दिल आजकल कहीँ न ये लगता तिरे बग़ैर।

शरद जोशी “शलभ”
धार (म.प्र.)
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दिल आजकल कहीँ न ये लगता तिरे बग़ैर।
आती नहीं है रास ये दुनिया तिरे बग़ैर।।

तू तो गया है अपने सफ़र पर कहीं मगर।
तबसे ही दिल मिरा नहीं धड़का तेरे बग़ैर।।

हर लम्हा मुन्तज़िर है मिरा तेरे वास्ते।
लगता नहीं है मुझको तो अच्छा तिरे बग़ैर।।

तेरे बिना तो ज़िन्दगी होगी नहीं बसर।
मरना मुहाल हो गया मेरा तेरे बग़ैर।।

तू क्या गया कि टूट गई है मिरी उमीद।
हर सिम्त हो गया है अँधेरा तेरे बग़ैर।।

खाने को दौड़ती है ज़माने की हर ख़ुशी।
किस-किस तरह से दिल को सँभाला तिरे बग़ैर।।

अब तो बहार में भी ख़िज़ा की चुभन लगे।
लगता ‘शलभ’ बसन्त भी फीका तिरे बग़ैर।।

परिचय :- धार (म.प्र.) निवासी शरद जोशी “शलभ” कवि एवंं गीतकार हैं।
विधा- कविता, गीत, ग़ज़ल।
प्राप्त सम्मान-पुरस्कार- राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान एवं विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं द्वारा वाणी भूषण, साहित्य सौरभ, साहित्य शिरोमणि, साहित्य गौरव सम्मान से सम्मानित हैं।
म.प्र. लेखक संघ धार, इन्दौर साहित्य सागर इन्दौर, भोज शोध संस्थान धार आजीवन सदस्य हैं। आप सेवानिवृत्त शिक्षक हैं, अखिल भारतीय साहित्य परिषद धार (म.प्र.) के जिला अध्यक्ष हैं व वर्तमान में साहित्य सेवा में निरंतर संलग्न हैं।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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